नई दिल्ली. पंजाब और पड़ोसी राज्य लगातार बारिश और बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं. जिसकी वजह से बकरियों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (GADVASU) के मुताबिक बीटल जैसी चुनिंदा नस्लों के प्रजनन काल को ध्यान में रखते हुए, बकरी पालकों को बकरी पालकों, विशेषकर प्रजनन पशुओं और बच्चों के प्रबंधन में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है. बकरियों की देखभाल के लिए जरूरी व्यवस्था की जानी चाहिए.
GADVASU के मुताबिक किसी एक्सपर्ट की सलाह लेकर जरूरत के मुताबिक बकरियों को कृमिनाशक दवा देनी चाहिए. गर्भवती पशुओं को बिना डॉक्टर के पर्चे के कृमिनाशक दवा नहीं देनी चाहिए. क्योंकि कई दवाएं गर्भवती बकरियों के लिए उपयुक्त नहीं होती हैं.
ये काम जरूर करें पशुपालक
यदि बकरियों को खुरपका-मुंहपका रोग और खून बहने की समस्या है तो सेप्टिसीमिया का टीका नहीं लगाया गया है, तो किसी विशेषज्ञ की देखरेख में संयुक्त टीका लगाया जा सकता है. बीमार पशुओं का टीकाकरण न करें.
आंखों की श्लेष्मा झिल्ली के रंग पर बारीकी से नजर रखें. यदि रंग हल्का या पीला है, तो तुरंत चिकित्सा सलाह लें और उचित उपचार लें.
शेड या बकरी बाड़े के फर्श, मिट्टी में लगातार नमी रहने से बकरियों को चकत्ते, स्किन संक्रमण हो सकते हैं. इसलिए, फर्श को यथासंभव सूखा रखने की व्यवस्था करें.
बाढ़ का पानी सीवेज, भारी धातुओं या औद्योगिक कचरे के कारण विभिन्न प्रकार की विषाक्तता पैदा कर सकता है.
बकरी पालकों को यह सुनिश्चित करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए कि बकरियाँ चरते समय बाढ़ का पानी न पिएं.
निचले इलाकों में चरने से बचना चाहिए क्योंकि यहाँ का पानी बकरियों में परजीवी रोगों का कारण भी बन सकता है.
मेमनों को खिलाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पानी को 10-15 मिनट तक उबालें और ठंडा रखें.
यदि संभव हो, तो धूप वाले दिन खुरों को 5 प्रतिशत फॉर्मेलिन या चूने के घोल से साफ करना चाहिए.
यदि बकरियों के खुर बड़े हो गए हैं, तो पानी सूखने के बाद उन्हें काट देना चाहिए.
बकरियों को फफूंदयुक्त अनाज या घटिया साइलेज या चारा न खिलाएँ, क्योंकि इससे विषाक्तता, अपच और गर्भपात हो सकता है.
पशुपालक किसान अपनी समस्याओं के समाधान के लिए विश्वविद्यालय से 62832-58834 और 62832-97919 पर संपर्क कर सकते हैं.
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