नई दिल्ली. कुछ लोग सोचते हैं कि मुर्गी, मछली, भैंस और गाय पालन ही मुनाफे का सौदा है लेकिन ऐसा सोचने वाले लोग गलत हैं. अगर ठीक से रखरखाब कर लिया जाए तो बकरी से ज्यादा मुनाफा किसी भी चीज में नहीं. आप बकरी का पालन शहर में करें या फिर गांव में अगर आपने केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के बनाए नियमों के मुताबिककर लिया तो आपकी बल्ले-बल्ले हो जाएगी. ये संस्थान बकरी पालकों को बकरी पालन करना साइंटीफिक तरीके से करना सिखाता है. अगर उनके बताए तौर तरीकों को अपनाकर बकरी पालन करते हैं तो आप परंपरागत तरीका अपनाकर बकरी पालल करने का तरीका पूरी तरह से वालों से ज्यादा कमाई कर सकते हैं.
बकरियों को बीमारियों बचाने के लिए दो माले का मकान बनाया
केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा एशिया के बड़े अनुसंधान केंद्र में से एक है. यहां पर वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालने के तौर तरीके सिखाए जाते हैं. संस्थान से बकरी और उसके बच्चों को बीमारी से बचाने के लिए एक खास तरह का मकान तैयार किया है, जो बकरी पालन में बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है. सीआईआरजी की रिसर्च के बाद ये मकान अब बाजार में आसानी से मिल जाता है. केंद्रीय बकरी अनुसंधान केंद्र यानी सीआईआरजी, मथुरा ने जगह की कमी को दूर करने और बकरियों को बीमारियों बचाने के लिए दो माले का मकान बनाया है. अगर एक बार आप इस मकान को बना लें तो ये कम से 15-20 साल तक चलेगा.
मकान में बड़े बकरे-बकरी और मिट्टी से दूर ऊपर रहते हैं बच्चे
केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी) के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर अरविंद कुमार इस खास मकान के बारे में बताते हैं कि इस मकान के बनाने से जगह की कमी तो दूर होती ही है, इससे सबसे ज्यादा लाभ बीमारियों में होता है. बीमारियों के इलाज में खर्च होने वाली रकम से भी बचा जा सकता है. उन्होंने बताया कि बकरी मिट्टी के संपर्क में रहने से चारे या फिर और दूसरे तरीके से मिट्टी छोटे बच्चों के पेट में चली जाती है. इससे उनके पेट में कीड़े पड़ जाते हैं, इससे बच्चों की ही नहीं बकरियों की भी मौत हो जाती है. इसी कारण इस खास मकान के नीचे बड़ीबकरी तो ऊपरी मंजिल पर छोटे बच्चों को रखा जाता है. ऊपरी रहने से बकरी के बच्चे मिट्टी के संपर्क में नहीं आते औरश्र मिट्टी खाने से बच जाते हैं.जब मिट्टी नहीं खाएंगे तो कीड़े नहीं पड़ेंगे और कीड़े नहीं पड़ेंगे तो बीमार नहीरं होंगे. डॉक्टर अरविंद बताते हैं कि शेड में चारा जमीन में गिरने से मिट्टी के संपर्क में आ जाता है और बकरी के पेट में चला जाता है. इतना ही नहीं चारे पर बकरी का यूरिन और मेंगनी (मैन्योर) भी लग जाता है. बकरी या उनके बच्चे जब इस चारे को खाते हैं तो इससे भी वो बीमार पड़ जाते हैं. इतना ही नहीं अगर जमीन कच्ची नहीं है तो यूरिन से उठने वाली गैस से भी बकरी और उनके बच्चे बीमार पड़ जाते हैं.
कम लागत में चलता है दो दशकों तक
प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर अरविंद कुमार ने इस खास तरह के मकान को बनाने में बहुत ज्यादा खर्चा नहीं आता. एक बड़ी बकरी को डेढ़ स्वायर मीटर जगह की जरूरत होती है. संस्थान ने जो दो मंजिला मकान का मॉडल बनाया है वो 10 मीटर चौड़ा और 15 मीटर लंबा है. इस मकान में नीचे 10—12 बड़ी बकरी रखी जा सकती हैं. वहीं ऊपरी मंजिल पर 17—18 बकरी के बच्चों को बेहद आसानी के साथ रखा जा सकता है. इतने बड़े मकान को बनाने में कम से कम 1.80 लाख रुपये की लागत आ जाएगी. इसे लोहे की एंगिल और प्लास्टिक की शीट से आसानी से बताया जा सकता है, जो बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाएगी. वहीं ऊपरी मंजिल पर फर्श के लिए तो कई कंपनियां इस तरह का फर्श बनाती हैं, जो आनलाइन भी मंगा सकते हैं.
बकरियों के ऊपर नहीं गिरती है मेंगनी
डॉक्टर अरविंद बताते हैं कि इस शेड या खास तरह के मकान की खूबी है कि ऊपरी माले की मेंगनी और बच्चों का यूरिन नीचे की बड़ी बकरयिों पर नहीं गिरता बल्कि ढलान शेप पर में लगाई गई प्लास्टिाक की शीट से होता हुआ बाहर की तरफ चला जाता है. इस कारण इस मॉडल में बकरी की मेंगनी सीधे मिट्टी के संपर्क में नहीं आती है.
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