नई दिल्ली. बकरियों को गरीबों की गाय कहा जाता है. हालांकि अब बकरी का कारोबार गरीबों के घर तक ही नहीं सीमित है. बल्कि इस कारोबार से लोग लाखों और करोड़ों रुपये कमाने लगे हैं. बकरी कारोबार का रूप ले चुका है और इसके मीट के साथ-साथ दूध को भी बेचा जाता है. दोनों ही चीजों से बकरी पालक को कमाई होती है. अगर सिर्फ बकरीद त्योहार की ही बात की जाए तो इस दौरान बकरी पालक एक झटके में लाखों का फायदा उठाते हैं. क्योंकि इस वक्त बकरों की खूब डिमांड रहती है और दाम भी मुंह मांगा मिलता है.
बात करें बकरी पालन की तो इन मवेशियों को भी बीमारी की खतरा रहता है और सबसे ज्यादा असर तो मेमनों पर रहता है और उनकी मृत्युदर भी ज्यादा है. कई बीमारियां ऐसी हैं जो खास नस्ल और क्षेत्र की बकरियों में पाई जाती है. आइए इसी में से बकरी चेचक बीमारी के बारे में जानते हैं कि आखिर ये किस नस्ल की बकरी में पाई जाती है और ये बीमारी कितनी खतरनाक है और इसका इलाज क्या है.
क्या है इस बीमारी के लक्षण
बकरी चेचक रोग ज्यादातर पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान एवं उनके आस-पास के क्षेत्रों में पाया जाता है. वर्तमान में यह रोग देश के अन्य भागों में भी देखा गया है. ब्लैक बंगाल प्रजाति की बकरियों इस रोग के प्रति काफी संवेदनशील होती है. यह रोग बकरियों की सभी अवस्था में होता है लेकिन छोटे बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं. शरीर की चमड़ी पर इस रोग के चकते/दाने मुख्य रूप से कान, होठ, थूथन व ऐसे सभी स्थानों की चमड़ी पर बाल रहित वाले स्थान पर पाये जाते हैं. इस रोग के बढ़ने पर न्यूमोनिया हो जाता है. इस रोग में मृत्युदर काफी ज्यादा होती है.
टीकाकरण से मुकम्मल तौर पर रोकें बीमारी
इस बीमारी के फैलने वाले क्षेत्रों में टीकाकरण कराते हुए, इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है. बीमारी की रोकथाम के लिए बकरियों को स्वस्थ बकरियों से अलग रखना चाहिए. बीमार बकरियों के रहने का स्थान साफ सुथरा हवादार होना चाहिए. विशेषकर खुरंटों को साफ कर जलाकर गड्ढे में डाल देना चाहिए. इस रोग से बचाव के लिए बकरी चेचक का टीका लगाया जाता है जो 3-4 माह की उम्र के मेंमनों में शुरुआती टीका 1 मिली, खाल में नीचे लगाते हैं. दूसरा टीकाकरण 6 माह बाद लगाना चाहिये. यह टीका प्रतिवर्ष लगाया जाना चाहिए. बकरी पालकों को यह स्पष्ट करना है कि भेड़ों का चेचक का टीका, बकरियों में चेचक से बचाव के लिए नहीं लगाया जाता है.
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