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पशु-पक्षियों से इंसानों में आने वाली बीमारी रोकने के लिए सरकार ने की इस अभियान की शुरुआत, पढ़ें डिटेल

नई दिल्ली. इबोला वायरस, कोविड, स्वाइन फ्लू वायरस और एवियन इंफ्यूलेंजा समेत न जाने कितनी महामारी हैं जो इंसानों में पशु पक्षियों की वजह से इंसानों में आ गई हैं. एक रिपोर्ट की माने तो 1.7 मिलियन वायरस तो जंगल में ही फैले होते हैं. जबकि इसमें बहुत सारे जूनोटिक होते हैं. जबकि इसके ही दुनिया भर में हर साल बिलियन केसेस आ जाते हैं. इससे लोगों की मौत भी होती है. इसी को देखते हुए भारत में 14 अप्रैल को नेशनल वन हेल्थ एंड नाम से एक अभियान की शुरुआत की गई है. इसको पशु पालन और डेयरी मंत्रालय ने पूरे देश में चलने की योजना बनाई है. बताया गया कि इंफेक्शन वाली 66% बीमारी जानवरों से होती है. 73 फ़ीसदी बीमारी ऐसी है, जिसका कारण भी यही पशु होते हैं. जबकि जिन महामारी को खतरे की तौर पर देखा जाता है उसमें से भी 80 फ़ीसदी बीमारी पशुओं के कारण ही होती है.

पिछले दिनों एनओएचएम के बारे में जानकारी देते हुए केंद्रीय मत्स्य पशुपालन और डेयरी सचिव राजेश कुमार सिंह ने कहा था कि 14 अप्रैल से देश भर में इस मिशन की शुरुआत की जा रही है. केंद्रीय मंत्री परोषत्तम रूपला, केंद्रीय मत्स्य पशुपालन और डेयरी मंत्रालय इसकी शुरुआत करेंगे. पशु पक्षियों या फिर जानवरों में पाई जाने वाली यह बीमारियां लोगों में न फैले इसकी वजह से इस महाअभियान की शुरुआत की गई है. इस मिशन में वर्ल्ड बैंक 50 फीसदी का हिस्सेदार बताया गया. इसके तहत इंसान, घरेलू पशु और वाइल्डलाइफ को ध्यान में रखते हुए अभियान चलाया जाएगा. खास तौर पर हेल्थ मिनिस्ट्री पशुपालन मंत्रालय और पर्यावरण मंत्रालय मिलकर इस क्षेत्र में काम करेंगे.

रही बात इस मिशन में काम करने की तो बता दें नेशनल लाइव स्टॉक मिशन की तरफ से सभी पशुओं को रोग की निगरानी का सिस्टम तैयार करने की योजना बनाई गई है. मिशन के रेगुलेटरी सिस्टम को मजबूत बनाने पर भी काम करने की योजना है. जिसके तहत नदी ऑनलाइन पोर्टल और फील्ड परीक्षण की दिशा निर्देश तय किए गए हैं. महामारी फैलने से पहले लोगों को उसके बारे में जानकारी देना जरूरी है. इस सिस्टम पर भी काम होगा. नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी के साथ मिलकर महामारी पर गंभीरता से काम करने की बात कही गई है. वहीं प्राथमिक रोगों के तक और उसका इलाज विकसित करने के लिए संसाधन भी तैयार करने की बात कही जा रही है. जब बीमारी का पता लग जाए और संवेदनशीलता में सुधार के लिए जो जूनोमिक और पर्यावरण निगरानी फार्मूला तैयार करने पर भी काम होगा.

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