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Green Fodder: पशुओं को पौष्टिक चारा के लिए लगाएं ये फसल, मिलेगा भरपूर दूध उत्पादन

हरे चारे के अंदर कई पौष्टिक गुण होते हैं. जिससे उत्पादन को बनाए रखने में मदद मिलती है.
प्रतीकात्मक तस्वीर का प्रयोग किया गया है।

नई दिल्ली. खरीफ के मौसम में कुछ पौष्टिक चारे वाली फसलों की वैज्ञानिक खेती की जा सकती है. जिससे पशुओं के लिए पौष्टिक चारा हासिल किया जा सकता है. अगर आप भी इसके बाारे में जानना चाहते हैं तो ये खबर आपके लिए है. दरअसल, हम यहां बात करने जा रहे हैं लोबिया की. लोबिया बेहद पौष्टिक होता है. इसमें 17 से 18 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है. इसकी बुआई अकेले या फिर गैर दलहनी फसलों जैसे-ज्वार, बाजरा या मक्का के साथ बोई जा सकती है. इस फसल से आपके पास चारे की कमी नहीं होगी.

भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम मेरठ उत्तर प्रदेश के मुताबिक उन्नत किस्मों की बात की जाए तो इसमें रशियन जायन्ट, एचएफसी.-42-1, यूपीसी-5286, 5287 यूपीसी 287, एनपी 3 (ई.सी. 4216), बुन्देल, लोबिया-1 (आईएफसी-8503), सीओ-5, सीओ (एफसी)-8 इत्यादि किस्मों को बुआई के लिये चुना जा सकता है. इन सभी किस्मों में प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त पाई जाती है. ये खाने में सुपाच्य होता है.

कैसे करें इसकी बुआई
बुआई का सही समय एवं बीज की मात्रा, वर्षा प्रारंभ होने पर जून-जुलाई के महीनों में इसकी बुआई करनी चाहिए.

अकेले बोने के लिए प्रति हैक्टर 40 किलो ग्राम बीज पर्याप्त होते हैं. मक्का या ज्वार के साथ मिलाकर बुआई के लिए 15-20 किलो ग्राम बीज का प्रयोग करना चाहिए.

बीज को 2.5 ग्राम मैन्कोजेब प्रति किलो ग्राम बीज की दर से अवश्य उपचारित करना चाहिए. इसकी बुआई सीडड्रिल से बने कुंडों में करनी चाहिए.

पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी रखनी चाहिए. मिलवां खेती में बुआई अलग-अलग पंक्तियों में अंतः सस्य के रूप में 2:1 के अनुपात में करना लाभदायक है.

उर्वरकः बुआई के समय 15-20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, फॉस्फोरस 60 कि.ग्रा. तथा पोटाश 40 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर प्रयोग की दर से करना चाहिए.

नाइट्रोजन की पूरी खुराक बुआई के समय ही प्रयोग करना न भूलें.

सिंचाईः खरीफ में बोई गई फसलों को सिंचाई की अधिक आवश्यकता नहीं पड़ती है. किंतु बरसात न होने पर सिंचाई करते रहना चाहिए.

फलियां बनने की अवस्था पर सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है. कटाई व उपजः फूल एवं फली बनने की अवस्था में फसल चारे की कटाई के लिये तैयार हो जाती है.

यह अवस्था बुआई के 60-75 दिनों बाद आती है. हरे चारे की उपज 250-300 क्विंटल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है.

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