नई दिल्ली. अदलहनी फसलों में मक्का चारा फसल की बुआई करके पशुओं की चारे की कमी को पूरा किया जा सकता है. मक्का चारा फसल से सालभर पशुओं को चारा उपलब्ध कराया जा सकता है. एक्सपर्ट का कहना है कि पशुपालन में पशुओं के चारे पर 70 फीसदी तक का खर्च आता है. अगर पशुपालकों के पास भूमि है तो वहां पर मक्का की फसल की बुआई करके पशुओं के लिए हरे चारे की समस्या को खत्म कर सकते हैं. आइए इस आर्टिकल में जानते हैं कि कैसे मक्का चारा फसल की खेती की जा सकती है और क्या है इसका तरीका. इसकी खासियत के बारे में भी जानते हैं.
मक्का के चारे में कार्बोहाइड्रेट व खनिज लवणों की मात्रा अधिक पायी जाती है. साथ में विटामिन ए व ई भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं. इसका साइलेज अच्छा वनता है. कम तापमान-कम ह्यूमिडिटी में इसका इजाफा अच्छा होता है परन्तु अधिक तापमान कम आर्द्रता में इसकी वृद्धि रुक जाती है तथा पौधे जल जाते हैं.
खेत की तैयारी कैसे करें
एक जुताई मिट्टी पलट हल से तथा 3-4 जुताइयों हैरों से कर खेतों को बुवाई के लिये तैयार करते हैं. यदि भूमि में उपयुक्त नमी न हो तो पलेवा करके खेत की तैयारी करनी चाहिये. बीज दर की बात की जाए तो आमतौर पर 50-60 किलोग्राम प्रति हेक्टयर प्रयोग करते हैं लेकिन इसे 70 कि.ग्रा. प्रति हेक्ट. तक भी बढ़ाया जा सकता है. बुवाई की विधि तथा समय की बात की जाए तो मक्का को मार्च से सितम्बर तक किसी भी समय बोया जा सकता है. इसकी बुवाई प्रायः छिटकाव विधि से की जाती है.
खाद और उर्वरक
सिंचित क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसल में 20 टन गोबर की खाद, 50 किग्रा. नत्रजन, 30 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 30 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्ट, प्रयोग करनी चाहिये. गोबर की खाद खेत की तैयारी से पहले और 1/3 से आधी नत्रजन की मात्रा, पूरी फास्फोरस एवं पोटाश बुवाई के समय खेत में मिला देनी चाहिये. नत्रजन की शेष मात्रा को सिंचाई के बाद एक या दो बार में टाप ड्रेसिंग से देना चाहिये.
सिंचाई एवं निराई गुड़ाईः
वर्षा कालीन फसल में प्रायः सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है. ग्रीष्म कालीन फसल में जरूरत के मुताबिक 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती हैं. जिन्हें भूमि तथा फसल की मांग के अनुसार देना चाहिये. एट्राजिन एक कि.ग्रा. सक्रिय तत्व का 1000 ली. पानी में घोल बनाकर अंकुरण से पूर्व छिड़काव करने से खरपतवार नियन्त्रित रहते हैं. मक्का की कटाई, बुवाई के 60 से 70 दिन के बाद भुट्टे निकलते समय करनी चाहिये. अच्छी फसल से प्रजाति के अनुसार औसतन 40 से 50 टन प्रति हेक्ट. हरा चारा प्राप्त होता है.
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