नई दिल्ली. आपने रंगों के त्योहार में होली में लोगों को एक-दूसरे पर रंग उड़ाते देखा होगा. मथुरा के बरसाना में कई तरह से होली खेली जाती है, लेकिन क्या आपने कभी पशु गोबर उत्सव के बारे में सुना है, या इसे देखा है, शायद आपको जवाब हो नहीं, लेकिन ऐसा होता है. इसे पशु गोबर उत्सव के नाम से जाना जाता है. दिवाली के बाद गोबर उत्सव कोई नया नहीं है, बल्कि ये पर्व करीब 300 साल से मनाया जा रहा है. इसके पीछे मान्यता भी है. जिस वजह से इसे बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस त्योहार में छोटे, बड़े, बुजुर्ग सभी भाग लेते हैं और बड़ी ही आस्था के साथ इसे मनाते हैं. आइए इस त्योहार के बारे में जानते हैं किस वजह से ये त्योहार मनाया जाता है.
तलवाड़ी हिल्स में गुमतापुरम गांव में ये आनोखा त्योहार मनाया जाता है. इस मौके पर लोग एक दूसरे पर गाय का गोबर फेंकते हैं और ये परंपरा कोई आज नहीं है, बल्कि बहुत ही पुरानी है. बताया जा रहा है कि करीब 300 साल से इस परंपरा को निभाया जा रहा है. जानकार कहते हैं कि इस रस्म को निभाने के पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से किसानों को खेत में फसल ककी ज्यादा पैदावार होती है.
गोबर से सने नजर आते हैं लोग
इस बार दिवाली के चौथे दिन रविवार को जब त्योहार की रस्म अदा होनी थी तो सुबह ही गांव भर से गोबर एकत्र करके एक गड्ढे में भर दिया गया. मंदिर के तालाब में देवता के औपचारिक अनुष्ठान के बाद, ग्रामीण गड्ढे में कूद गये और एक-दूसरे के खिलाफ मवेशियों के गोबर फेंकने लगे. इस दौरान छोटा—बड़ा हर कोई एक-दूसरे पर गोबर को फेंकता नजर आया. इस त्योहार की सामने आई तस्वीरों को में देखा गया है कि लोग गाय के गोबर से बिल्कुल सने हुए नजर आ रहे हैं. लोगों के शरीर पर, चेहरे पर और बालों पर गोबर लगा दिखाई दे रहा है.
त्योहार मनाने के पीछे है ये मान्यता
स्थानीय लोगों ने बातया कि त्योहार की मान्यताओं में से एक यह भी है कि बहुत पहले प्राकृतिक खाद के रूप में एक गड्ढे का इस्तेमाल किया जाता था. फिर एक दिन इसी गड्ढे से शिवलिंग निकल आई. जिसे अब बीरेश्वर मंदिर के अंदर रखा गया है. जिसके बाद से इस त्योहार को बड़े पैमाने पर मनाया जाने लगा. कहा जाता है कि एक बार जब मवेशियों के गोबर की रस्म पूरी हो जाती है, तो गोबर को ग्रामीणों के बीच वितरित किया जाता है, जो तब इसका उपयोग अपनी खेती के पोषण के लिए करते हैं और मानते हैं कि इससे वर्ष की उपज समृद्ध होती है.
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