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Animal Husbandry: कैसे होती है पशुओं में FMD की बीमारी, हर एक वजह को पढ़ें यहां

गर्मियों में पशु बहुत जल्द बीमार होते हैं. अगर ठीक से इनकी देखरेख कर ली जाए तो हम पशुओं को बीमार होने से बचा सकते हैं.
प्रतीकात्मक फोटो.

नई दिल्ली. वायरस से पैदा होने वाली इस बीमारी को कई स्थानों पर कई स्थानीय नामों से जाना जाता है जैसे कि मुंहपका-खुरपका चपका, खुरपा आदि. यह बहुत तेजी से फैलने वाली छूतदार बीमारी है. आमतौर पर गाय भैंस, भेड़, बकरी और ऊंट आदि पशुओं में होता है. विदेशी व संकर नस्ल की गायों में यह बीमारी अधिक गम्भीर रूप में पायी जाती है. यह बीमारी हमारे देश में हर स्थान पर होती है. इस बीमारी से ग्रस्त पशु ठीक होने के बाद भी कमजोर रहते हैं. दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन बहुत कम हो जाता है और बैल काफी समय तक काम करने योग्य नहीं रहते.

एमएमडी रोग एक सूक्ष्म वायरस के अनेक प्रकार होते हैं. इनकी प्रमुख किस्मों में ओएसी एशिया-1, एशिया-2, एशिया-3. सैट-1, सैट-2, सैट-3 तथा इनकी 14 उप-किस्में शामिल हैं. हमारे देश में यह बीमारी आमतौर पर ओएसी तथा एशिया-1 प्रकार के वायरस द्वारा होती है. नम-वातावरण, पशु की अंदुरूनी कमजोरी, पशुओं तथा लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने-जाने तथा नजदीकी क्षेत्र में रोग का प्रकोप इस बीमारी को फैलाने में सहायक कारक हैं.

कैसे होती है ये बीमारी
यह रोग बीमार पशु के सीधे सम्पर्क में आने, पानी, घास दाना, बर्तन, दूध निकालने वाले व्यक्ति के हाथों से, हवा से तथा लोगों के आवागमन से फैलता है. रोग के वायरस बीमार पशु की लार, मुंह, खुर व थनों में पड़े फफोलों में बहुत अधिक संख्या में पाए जाते हैं. ये खुले में घास, चारा तथा फर्श पर चार महीनों तक जीवित रह सकते हैं लेकिन गर्मी के मौसम में ये बहुत जल्दी नष्ट हो जाते हैं. वायरस जुबान, मुंह, आंत, खुरों के बीच की जगह, थनों और घाव आदि के द्वारा हैल्दी पशु के रक्त में पहुंचते हैं. लगभग पांच दिनों के अंदर उसमें बीमारी के लक्षण पैदा करते हैं. रोग के लक्षण रोग ग्रस्त पशु को 104-106 डिग्री फारेनहाइट तक बुखार हो जाता है. वह खाना-पीना व जुगाली करना बन्द कर देता है. दूध का उत्पादन गिर जाता है.

लंगड़ाकर चलने लगते हैं पशु
मुंह से लार बहने लगती है तथा मुंह हिलाने पर चपचप की आवाज आती है इसी कारण इसे चपका रोग भी कहते हैं. तेज बुखार के बाद पशु के मुंह के अंदर, गालों, जीभ, होंठ, तालू व मसूड़ों के अंदर, खुरों के बीच तथा कभी-कभी थनों व अयन पर छाले पड़ जाते हैं. ये छाले फटने के बाद घाव का रूप ले लेते हैं जिससे पशु को बहुत दर्द होने लगता है. मुंह में घाव व दर्द के कारण पशु खाना-पीना बन्द कर देता है जिससे वह बहुत कमजोर हो जाता है खुरों में दर्द के कारण पशु लंगड़ाकर चलने लगता है.

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