नई दिल्ली. मथुरा का पेड़ा एक मशहूर भारतीय मिठाई है, जिसे उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर में पहली बार बनाया गया था. पेड़ा पिंडी प्रकार के मावे से बनने वाली मिठाई है. भारत में मथुरा पेड़ा, मथुरा का एक ट्रेडमार्क या पहचान है. मथुरा के निवासियों का दावा है कि इसी प्राचीन शहर में पेड़ा की उत्पत्ति हुई थी. आमतौर पर, उत्तर प्रदेश में मथुरा, जिसे ब्रज भूमि भी कहा जाता है, अपने कई बेहतरीन व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध है, क्योंकि यह उनके अपने मंदिरों में भोग लगाने के लिए बनता है. इन पेड़ों के स्वाद में ब्रजभूमि की महक है.
दावा किया जाता रहा है कि मथुरा पेड़ा को प्राचीन काल से ही पहचान मिल चुकी है. जब तभी त्योहारों में मिठाई के रूप में पेड़ा का प्रयोग किया जाता था और भगवान को प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता था. यहां के प्रसिद्ध मंदिरों में यह प्रथा आज भी जारी है. मंदिर परिसर के आसपास ऐसी कई दुकानें हैं. जो इन पेड़ों को बेचती हैं, लेकिन कुछ विशेष दुकानें हैं. जो दूर-दूर तक पहचानी जाती हैं और जो इस परंपरा की वास्तविक संरक्षक हैंं.
साथ कई मान्यताएं भी जुड़ी हैं
श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव के समय पेड़ा लगभग सर्वव्यापी हो जाता है. इसमें लगी सामग्री वाराणसी लाल पेड़ा के समान ही है, लेकिन इस पेड़े में अतिरिक्त केसर डाला जाता है. चूंकि केसर का मूल्य महंगा है, इसलिए यह घटक केवल कुछ मुट्ठी भर दुकानों में ही उपलब्ध होता है. ये पेड़ा लोकप्रिय प्रसाद होने के साथ श्रद्धालुओं का मनपसंद ‘मीठा’ भी है. पेड़े को ताजे मावे, दूध, चीनी, घी और इलाइची चूर्ण मिलाकर बनाया जाता है. भारत में जन्माष्टमी की छुट्टियों पेड़े के स्वाद के बिना अधूरी मानी जाती हैं. हर साल जन्माष्टमी पर पेड़े बनते हैं, जिनसे भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाया जाता है और व्रत खंडन भी पेड़े से ही किया जाता है. भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा की बात ही निराली है.
ऐसे बनाया जाता है मथुरा पेड़ा
बीते समय के साथ ही मथुरा के पेड़े की मांग भी बढ़ी है. मौजूदा समय में मथुरा की हर गली में ये पेड़े बनाए जाते हैं, वहीं इसे बनाने के तरीके में भी कुछ बदलाव हुआ है. आजकल पेड़ा बनाने के लिए दूध को खूब उबाला जाता है. इसके बाद जब दूध को जलाकर लाल किया जाता है, तो उसमें चीनी और काली मिर्च का चूर्ण मिलाया जाता है. इसे ठंडा होने के बाद पेड़े की शक्ल दी जाती है. मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण का दर्शन पेड़ों के बिना अधूरा है. इसीलिए मंदिर के आस-पास पेड़ों की सैकड़ों दुकानें मौजूद हैं. दावा ये भी किया जाता है कि पेड़े में 65-70 प्रतिशत दूध मात्रा में पोषक तत्व होते हैं, जिसमें सीरम प्रोटीन, लैक्टोस अधिक मात्रा में और खनिज तथा विटामिन कम मात्रा में उपस्थित होते हैं.
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