नई दिल्ली. जो भी किसान पशुपालन करते हैं वह पशुओं के दूध से सबसे ज्यादा फायदा उठाते हैं. वहीं किसानों को पशुओं के बछड़ों से भी फायदा होता है. अगर पशु ने बछड़ी को जन्म दिया है तो आगे चलकर यही बछड़ी दूध देने लगती है और पशु पालक का फायदा दोगुना हो जाता है. हालांकि जन्म के फौरन बाद बछड़े या बछड़े की केयर करना बहुत ही जरूरी होता है. खास तौर पर उसे खीस पिलाना ज्यादा अहमियत रखता है. क्योंकि यही वो चीज है जो उसकी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है. बछड़े के सर्वांगीण विकास के लिए अहम खीस बहुत ही अहम होती है.
हालांकि जन्म के कितनी देर के बाद खीस पिलाया जाए और कितनी मात्रा में खीस पिलाया जाए, क्या 24 घंटे के बाद खींच पिलाया जा सकता है? या नहीं. तमाम तरह के सवाल रहते हैं. इसके अलावा अगर किसी पशु की जन्म के बाद मौत हो जाए तो उसके बछड़े को कैसे सीख पिलाई जाए. इन सवालों के जवाब आपको इस आर्टिकल में दिया जा रहा है और इसे गौर से पढ़ें ताकि आपको मालूम हो सके बछड़े के जन्म के क्या करना है.
कम दें खीस बछड़े को
जन्म के बाद पहले घंटे के भीतर जितनी जल्दी हो सके बछड़े को पिला देनी चाहिए. नवजात बछड़े की आंतों में उसके जन्म के 24 घंटों तक प्रोटीन के बड़े अणुओं को अवशोषित करने की क्षमता रहती है. जन्म के पहले 6 घंटों में लगभग 2.5-3 लीटर या बछड़े के भार के 10 प्रतिशत के बराबर खीस पिला देनी चाहिए. गाय की आयुः प्रायः बूढ़ी गायों में खीस, अधिक मात्रा में अच्छी गुणवत्ता का पाया जाता है. तीन या अधिक ब्यांत वाली गायों में खीस सामान्यतः अच्छी गुणवत्ता की होती है. सूखे की अवधिः तीन सप्ताह से कम सूखी अवधि में इम्युनोग्लोबुलिन मैमोरी ग्लेण्ड में इकट्ठा नहीं हो पाता है. इसलिये सूखी अवधि लंबी (3 सप्ताह से अधिक) होने पर बेहतर खीस प्राप्त होती है.
कृत्रिम खीस के बारे में जानें
कभी-कभी ऐसा भी होता है कि किसी कारणवश मां, बच्चे ब्याने के बाद खीस देती ही नहीं है या गाय की मृत्यु हो जाती है. ऐसी परिस्थिति में अगर कोई और गाय आसपास में ब्याई हो, तो उसका खीस पिलाया जा सकता है. खीस उपलब्ध नहीं होने पर शिशु को कृत्रिम खीस (ताजा दूध-500 मि.ली., एक अंडा 55-60 ग्राम, गुनगुना पानी-300 मि.ली. तथा अरंडी का तेल 1-2 चम्मच) घर पर बनाकर पिलाना चाहिए. कृत्रिम खीस दिन में तीन बार पिलाना चाहिए. इस प्रकार ऊपर बताई गई खीस प्रबंधन विधि को ध्यान में रखकर किसान न केवल युवा वंश (बछड़ा व बछड़ी) की मृत्युदर को कम कर सकते हैं, बल्कि भविष्य में होने वाले आर्थिक नुकसान से भी बच सकते हैं. इस प्रकार एक बेहतर उत्पादन वाला डेरी पशु समूह तैयार कर सकते हैं.
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