नई दिल्ली. ताजा पानी में जलजीव पालन यानि झींगा और मछली पालन पर गौर किया जाए तो साल दर साल इसमें बढ़ोतरी ही हुई है. आंकड़ों के मुताबिक साल 1980 के दौर में ताजा पानी में जलजीव पालन (aquatic life) के जरिए जहां मात्र 3.7 लाख टन का उत्पादन होता था. वहीं ये 2010 आते-आते दस गुना बढ़कर 40.3 लाख टन को पार हो गया था. इसे दूसरे शब्दों में कहा जाए तो हर साल 6 प्रतिशत की दर से इमसें वृद्धि देखने को मिली है. जबकि भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के द्वारा जारी मौजूदा वक्त के आंकड़ों पर गौर करें तो ये अब 80 लाख टन के पार पहुंच गया है.
बता दें कि कुल जलजीव पालन में ताजा जलजीव पालन की भागीदारी की बात की जाए तो ये 95 प्रतिशत के बराबर है. इसमें इसमें कार्प, कैटफिश, प्रॉन, पंगासियास, तिलापिया, आदि का मुख्य रूप से उत्पादन किया जाता हैं. ताजा मछली पालन में तीन मुख्य कार्प किस्मों कतला, रोहु, और मृगल की हिस्सेदारी लगभग 70 से 75 प्रतिशत तक है. इनके बाद सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प कॉमन कार्प, कैटफिश की भागीदारी हैं. एक आकलन के अनुसार फ्रेशवाटर एक्काकल्चर के अधीन उपलब्ध क्षेत्रफल का मात्र 40 प्रतिशत (कुल 23.6 लाख हेक्टेयर में उपलब्ध जलाशय का 40 प्रतिशत) ही वर्तमान में प्रयोग किया जाता हैं.
इन वजहों से बढ़ा है उत्पादन
ऐसे जल संसाधनों के अधिक एवं दक्षतापूर्ण इस्तेमाल से निश्चित रूप से मत्स्य उत्पादन में काफी बढ़ोतरी हो सकती हैं. प्रेरित कार्प प्रजनन और पोलीक्लचर की तकनीक के प्रचलन से देश में ताजा जलजीव पालन के क्षेत्र में क्रान्तिकारी बदलाव देखने को मिले हैं और इसी के वजह से उत्पादकता प्रतिवर्ष बहुत ज्यादा इजाफा हो गया है. इस सफलता में मत्स्य कृषकों की मेहनत के अतिरिक्त सरकारी मत्स्य कृषक एजेंसियों खारा जल मत्स्य कृषक विकास एजेंसियों तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रशिक्षण कार्यक्रमों की अहम भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
36 हजार लाख रुपये हुए इनवेस्ट
भारत में लगभग 2.36 मिलियन हेक्टेयर टैंक और तालाब क्षेत्र हैं जहां कल्चर आधारित मात्स्यिकी प्रमुख है और कुल मत्स्य उत्पादन में अधिकतम हिस्सेदारी का योगदान देता है. टैंकों और तालाबों से वर्तमान में उत्पादन 8.5 मिलियन मीट्रिक टन है. उत्पादन की दिशा में एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में, विभाग ने 13.5 मिलियन मीट्रिक टन के लक्ष्य उत्पादन को प्राप्त करने के लिए टैंकों और तालाबों के क्षैतिज क्षेत्र (horizontal area) का विस्तार करने को प्राथमिकता दी है. इसे देखते हुए, विभाग ने नवीन तकनीकों का फायदा उठाने के लिए जरूरी प्रोत्साहन प्रदान करने के लिए, विभिन्न राज्यों से प्राप्त प्रस्तावों को मंजूरी दी है. गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत कुल परियोजना लागत 36,031.70 लाख रुपये के साथ निम्न मंजूरी प्रदान की गई है.
Leave a comment