नई दिल्ली. बकरी एक बेहतरीन मवेशी है. इसे पालकर अच्छी आमदनी कमाई जा सकती है. बकरी पालन करके पशुपालकों दो तरह से कमाई कर सकते हैं. एक तो बकरी का मीट बेचकर और दूसरा बकरी का दूध बेचकर. वैसे तो बकरी के दूध को लोग ज्यादा पीना नहीं पसंद करते हैं लेकिन ये बहुत ही पौष्टिक होता है. जबकि डेंगू जैसे बुखार के दौरान तो इसका दूध अमृत हो जाता है और 500 रुपये लीटर तक बिकता है. हालांकि ये तभी संभव है जब बकरी हेल्दी रहेगी और बेहतर प्रोडक्शन करेगी.
इसके लिए जरूरी है कि बकरी को बीमारी से बचाया जाए. बकरी को किसी तरह की बीमारी न लगने दी जाए. इस आर्टिकल में हम आपको बता रहें कि कैसे बकरी को हेल्दी रखा जा सकता है. आइए एक्सपर्ट की सलाह पढ़ते हैं.
आइसोलेश पीरियड है बेहद जरूरी
एक्सपर्ट का कहना है कि बकरी पालन शुरू हमेशा स्वस्थ पशुओं से करना चाहिए. खरीद के समय हर एक पशु का बीमारियों के विशेष लक्षण आदि की जानकारी कर लेनी चाहिए. आमतौर पर इन्हें किसी खास व विश्वसनीय सोर्स से खरीदना चाहिए. खरीद के तुरन्त बाद लगभग एक माह तक रेबड़ की अन्य बकरियों से इन्हें अलग रखना चाहिए. ये बीमारी नियंत्रण व बचाव में अहम् भूमिका निभाता है. परजीवी व रोगों के नियंत्रण के लिए आइसोलेश पीरियड काल में इनका डीवार्मिंग करना चाहिए. जूं को खत्म करना चाहिए और टीकाकरण करना चाहिए. हमारे देश में अधिकांश बकरियां वाइड एरिया में पाली जाती हैं. इसलिए ये कार्यक्रम चलाना बेहद ही जरूरी है.
फीड में ये आहार दे सकते हैं
बकरियों को हो सके तो सन्तुलित व पर्याप्त आहार देना चाहिए. क्योंकि अच्छा खाने वाली बकरियों में संक्रमण व परजीवियों के से लड़ने की क्षमता डेवलप हो जाती है. सप्लीमेंट विटामिन व खनिज बकरियों को रातब के माध्यम से देते रहना चाहिए. यह गौर करने वाली ये बात है कि कि अपने क्षेत्र में खनिज लवणों की कमी के अनुसार, क्षेत्र विशेष के लिए उपलब्ध खनिज मिश्रण ही बकरियों को देना बेहतर होता है. एक्सपर्ट का कहना है कि उत्तर प्रदेश, दिल्ली व उत्तराखण्ड के लिए विकसित व उपलब्ध खनिज मिश्रण जैसे लाइकामिन, कैलमिन (फोर्ट), शक्तिमिन, मिनटक इत्यादि रोजाना 5-10 ग्राम देना चाहिये.
साफ-सफाई का रखें ध्यान
वहीं बाड़े में आरामदायक वातावरण देकर बकरियों को इकोलॉजिकल स्ट्रेस से मुक्त रखा जा सकता है. इंटेंसिव मेथड में पाली जाने वाली बकरियों के बाड़े तथा आहार व पानी के बर्तनों को नियमित सफाई आवश्यक है, ताकि बाड़े व बर्तनों में रोगजनक परजीवी व कीट न पनप सकें. अन प्रोडक्टिव बकरियों को रेबड़ से छांटकर अलग करके उनके स्थान पर परीक्षित अच्छे प्रजनक पशुओं को रखना बेहद ही जरूरी होता है.
बकरियों को देना चाहिए अलग
इंटरनेल परजीवियों के लिये लगातार मल परीक्षण जरूरी होता है. ताकि संक्रमण की आपतन दर व तीव्रता का समय से पता चल सके. इससे उचित प्रभावी चिकित्सा में सहायता मिलती है. बारिश के मौसम में डीवार्मिंग जरूर करना चाहिए. इसके अलावा बाह्य रूप से बकरियों में किसी रोग लक्षण दिखाई दे तो बीमार पशु को रेबड़ से अलग करना चाहिए. पशु चिकित्सक की मदद लेनी चाहिए. इसके साथ ही बाड़े व पशु उपयोग के बर्तनों की सफाई व विसंक्रमण सम्बन्धित गतिविधियों को और गहन कर देना चाहिए. बकरियों को अन्य पशुओं जैसे गाय, भेड़ आदि से अलग कर देना चाहिए. इससे पशुओं में विभिन्न रोगों व परजीवियों का अन्तः संचरण नहीं होता.
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