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Poultry Farming: बारिश के मौसम में मुर्गियों को होती है ये दो बीमारियां. पढ़ें कैसे करें इससे बचाव

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फार्म के अदंर मुर्गियों को दाना खिलाते किसान नत्थू सिंह.

नई दिल्ली. बारिश का मौसम गर्मी से तो राहत देता है, लेकिन साथ ही कई तरह की बीमारियां भी साथ लाता है. बरसात के मौसम में जहां पशुओं को तमाम तरह की दिक्कते होती हैं तो वहीं मुर्गियां भी इससे बच नहीं पाती हैं. बारिश शुरू होते ही मुर्गियों में कई तरह की बीमारियाँ पैदा होती हैं, जिनका सही समय पर इलाज करना बहुत ही जरूरी होता है. वहीं बीमारियों से बचाव कर लिया जाए तो फिर बहुत ही बेहतर होगा. क्योंकि बीमारियों से उनके प्रोडक्शन पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही उनके मरने का भी खतरा रहता है.

वैसे तो बसरात के मौसम में मुर्गियों को कई तरह की बीमारियों होती हैं लेकिन इस आर्टिकल में हम दो बीमारी का जिक्र कर रहे हैं, जिनकी जानकारी हर पोल्ट्री संचालकों को होनी चाहिए. इन बीमारियों से निजात मिल गई तो पोल्ट्री कारोबार को फायदा होगा.

कॉक्सी डियोसिस (कॉक्सी)
आमतौर पर साधारण भाषा में इसे कॉक्सी भी कहते हैं. जब मौसम गर्म एवं नमी वाला होता है तो यह बीमारी पनपने लग जाती है. यह बीमारी बुरादे में पाए जाने वाले कॉक्सी के ऊसाइट से फैलती है. इस बीमारी में पक्षी अपनी गर्दन बुरादे में झुकाए हुए सुस्त खड़ा रहता है और लाल बीट करता है. मुर्गियों की मृत्युदर बढ़ती जाती है. पोस्टमार्टम करने पर आंतों में खून मिलता है. समय रहते निदान होन पर मृत्युदर में कमी आती है एवं पक्षी स्वस्थ हो जाते हैं. बीमारी से बचाव की बात की जाए तो दाने में उचित मात्रा में एंटीकॉक्सी दवाई डालें. बुरादे का उचित रख-रखाव करें. एक भी पक्षी ऐसा दिखे जो अस्वस्थ हो या लाल बीट कर रहा हो, उसे अन्य पक्षियों से अलग कर दें. कॉक्सी आने पर उसका इलाज मुर्गी विशेषज्ञ के परामर्श पर करें.

माइकोटॉक्सिकोसिस-
बारिश के मौसम में माइकोटॉक्सिकोसिस एक सामान्य समस्या है. अक्सर कई तरह के माइकोटॉक्सिन दाने में पैदा हो जाते हैं जो मुर्गी के लिए नुकसानदायक होते हैं. अफ्लाटॉक्सिन, टी-2 टॉक्सिन, जेरलेनॉन आदि प्रमुख माइकोटॉक्सिन हैं जो पक्षियों की मौत को बढ़ाते हैं और वजन को भी कम करते हैं. अंडे वाली मुर्गी में अंडा उत्पादन को कम करते हैं. पोस्टमार्टम करने पर लिवर का आकार बढ़ा हुआ दिखता है. किडनी में सूजन मिलती है. गिजार्ड एवं प्रोवेन्ट्रिकुलस में लाल धब्बे दिखाई देते हैं. गिर्जा की झिल्ली आसानी से अलग हो जाती है. बचाव कैसे करें दाना उचित गुणवत्ता का एवं फफूंद रहित देना चाहिए. दाने का स्टोर उचित हो, नमी या बारिश से खराब न हो. दाने में टॉक्सिन बाइण्डर की मात्रा बारिश में बढ़ा देना चाहिये. टॉक्सिीसिटी की समस्या आने पर उसका इलाज मुर्गी विशेषज्ञ की सलाह पर करें.

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