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Fish Farming: मछली के साथ करें मुर्गी पालन तो होगी दोहरी कमाई, फिश फार्मिंग की कास्ट भी होगी कम

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मछलियों की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. मछली पालन के साथ बत्तख और मुर्गी पालन किया जा सकता है. अगर आप मछली के साथ मुर्गी पालन करते हैं तो इससे मुनाफा कई गुना बढ़ जाएगा. दरअसल, मुर्गी पालन करने से आपको जहां मुर्गियों से अंडे और मांस हासिल होगा, वहीं मुर्गियों की वजह से मछलियों को चारा भी कम देना होगा. क्योंकि मुर्गियां जो बीट करेंगी मछलियां उसे चारे के तौर पर इस्तेमाल कर सकती हैं. इसलिए मुर्गी पालन से भी कमाई की जा सकती है और मछली बेचकर भी मुनाफा हासिल किया जा सकता है.

अगर आपने भी मन बना लिया है कि मछली पालन के साथ मुर्गी पालन भी करेंगे तो आपको पता होना चाहिए कि मुर्गी पालन में क्या—क्या व्यवस्थाएं करनी होंगी. इसके साथ ही किस तरह की मुर्गियों को पालें इसकी भी सटीक जानकारी होनी चाहिए. आपको इस आर्टिकल में हम यही बता रहे हैं ताकि आपको मछली पालन के साथ मुर्गीपालन करके दोहरा मुनाफा हो.

मुर्गीपालन संबंधित व्यवस्थाएं और घर
मुर्गियों के लिए घर का इंतजाम तालाब के किनारे भूमि पर या तालाब के अन्दर झोपड़ी बनाकर किया जा सकता है. मुर्गी के घर को आरामदायक गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गरम रखने की व्यवस्था होनी चाहिए. मछली सह मुंर्गीपालन अंतर्गत मुर्गियों को रखने की आधुनिक सघन प्रणाली अपनाई जाती है. इसमें पक्षियों को मुर्गी के लिए बनाये गए घर के अन्दर ही निरंतर रखा जाता है. इसमें बैटरी सिस्टम (पिंजरों का कतार) की तुलना में डीप लीटर सिस्टम को प्राथमिकता दी जाती है. डीप लीटर सिस्टम में 10 सेटीमीटर ऊंची बारीक किन्तु सूखी धान की भूसी, कुट्टी किया गया धान का पैरा, लकड़ी का बुरादा, गेहूं की भूसी आदि किसी चीज की बिछाई जाती है. यही डीप लीटर है. मुर्गियों का मलमूत्र नीचे बिछाए गए तह पर गिरता है. यदि नीचे का लीटर कुछ गीला सा हो जाता है, तो उसे सूखाने के लिए चूना डाला जाता है तथा उसमें हवा लगती रहे. जरूरत पड़ने पर भूसी आदि भी डाली जाती है. लगभग दो माह में यह डीप लीटर बन जाता है, और 10-12 माह में पूर्णतया विकसित लीटर बन जाती है. जो तैयार खाद है.

खाद के रूप में उपयोग
मुर्गी घर से निकाले गए पोल्ट्री लीटर का भंडारण कर लिया जाता है. मछलीपालन हेतु तालाब में इसे प्रतिदिन सुबह 50 किलो प्रति हेक्टर की दर से डाला जाता है. यदि शैवाल पूंज (काई अधिक) होने पर पोल्ट्री लीटर कुछ दिन नहीं डालना चाहिए. 25-30 मुर्गियों से एक वर्ष मे एक मेट्रिक टन पोल्ट्री लीटर बनता है. इसलिए एक हेक्टर जलक्षेत्र के लिए 500-600 मुर्गियां रखना पर्याप्त होता है. इतने पक्षी 20 मैट्रिक टन (खाद) लीटर देगें. पूरी तरह तैयार लीटर में 3 फीसदी नाइट्रोजन, 2% फास्फेट और 2% पोटाश रहता है.

मुर्गियों का चयन और आहार
अच्छे पक्षियो में रोड आईलैंड या सफेद लेगहार्न प्रजाति उपयुक्त है. मुर्गी के आठ सप्ताह के चूजों को रोग प्रतिरोधक टीके लगाकर रखा जाता है. प्रति हेक्टर जलक्षेत्र के लिए 500-600 मुर्गी रखना उपयुक्त है. मुर्गियों को आयु के अनुरूप संतुलित मुर्गी आहार दिया जाता है. आहार फीड हापर में रखा जाता है, ताकि आहार बेकार न जाए. 9-20 सप्ताह तक “ग्रोअर मेष” 50-70 ग्राम प्रति पक्षि प्रति दिन की दर से और बाद में लेयर मेष 80-120 ग्राम प्रतिदिन की दर से आहार दिया जाता है. मुर्गियां 22 सप्ताह बाद अंडे देना प्रारंभ कर देती हैं. मुर्गियों को 18 माह तक अंडे की प्राप्ति हेतु रखना चाहिए.

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