नई दिल्ली. बकरी पालन में आर्गेनिक चारा देने आलवा जो सबसे ज्यादा दिक्कत वाली बात है वो है बकरी को प्लेग और बकरी चेचक जैसी बीमारी से बचाना. क्योंकि ये बीमारियां बड़ी बकरी समेत उसके बच्चों के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होती है. बकरियों को होने वाली ये बीमारियां ही वो यही वो बीमारी हैं जो बकरियों में मृत्युरदर अचानक से बढ़ा देती है. ये बीमारी इतनी खतरनाक मानी जाती है कि पशु पालक की जरा सी भी लापरवाही बकरी—बकरों की तीन-चार दिन बाद ही मौत हो जाती है. लेकिन इसके कुछ लक्षण हैं और यदि बकरी पालक को ये पता है तो वो अपनी बकरी को इससे बचा सकता है. वहीं बकरी पालन में जो खतरनाक पहले उसकी मृत्युदर है उसे कंट्रोल किया जा सकता है. इस व्यवसाय में तभी बड़ा मुनाफा कमाया जा सकता है.
इस मसले को लेकर सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. के. गुरुराज ने बताया कि जब बकरियों और उनके बच्चों में बकरी प्लेग के कारण निमोनिया होता है तो उन्हें सांस लेने में सबसे ज्यादा दिक्कत होती है. उन्हें बुखार हो जाता है. इतना ही नहीं उनकी नाक भी बहने लग जाती है. किसानों को चाहिए कि इन लक्षणों को अच्छी तरह से पहचानते रहें. ऐसा लक्षण दिखाई देने पर इलाज जरा भी देर न करें. जानकारों की मानें तो गर्मी शुरू होते ही सबसे पहले तो बकरी पालक को बकरियों के आवास में फेरबदल कर देना चाहिए. कोशिश करें कि बकरियों के शेड को ढक दें और ये इत्मीनान कर लें कि उसमे गर्म हवाएं न जाएं. वहीं बकरियों को दोपहर एक बजे से चार बजे शाम तक बकरियों और उनके बच्चों को चराने न ले जाया जाए. पशु पालक को चाहिए कि सुबह और शाम ही बकरी को चराया जाए.
क्या है इस बीमारी की बड़ी पहचान
केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थांन के सीनियर साइंटिस्टं डॉ. के. गुरुराज ने कहते हैं कि आमतौर पर फरवरी-मार्च में बकरी प्लेग की शुरुआत होने लगती है. यदि प्लेग की बात करें तो इसकी पहचान यह है कि बकरी को दस्त की शिकायत हो जाती है. वहीं निमोनिया होने से नाक भी बहने लग जाती है. इसके अलावा तेज बुखार भी आता है. जबकि बड़ी बकरियों से ही यह बीमारी उसके बच्चों में भी फैल जाती है. इसी तरह से बकरी को चेचक होने पर निमोनिया होता है और तेज बुखार आ जाता है. बकरी चारा खाना छोड़ देती है. बच्चे भी दूध कम ही पीते हैं.
पशु पालकों को क्या करना चाहिए
डॉ. के. गुरुराज कहते हैं कि बकरी प्लेग और चेचक का सबसे बड़ा अचूक उपाय ये है कि इसके लिए भारी-भरकम खर्च से बचें. पशु पालकों को चाहिए कि प्लान के मुताबिक बकरियों को प्लेग और चेचक के टीके लगवाए. क्योंकि टीके लगवाने का खर्च जहां बहुत ही मामूली होता है और सरकारी केन्द्रों पर तो यह फ्री में लगता है. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर यह बीमारी बकरियों को लग जाए तो इलाज में काफी पैसा खर्च होता है. यूपी में तो बार्डर वाली जगहों पर यह टीके फ्री में लगाने की व्यवस्था है. साथ ही एक जरूरी कदम यह भी उठाने की जरूरत है कि अगर बकरी को प्लेग या चेचक हो जाए तो उसे फौरन ही दूसरी बकरियों से अलग कर दिया जाना चाहिए. इसका मतलब यह है कि सेहतमंद बकरी और बीमारी बकरियों को अलग-अलग रखना चाहिए, ताकि हेल्दी बकरी हेल्दी बनी रहे.
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