नई दिल्ली. वो दिन बीत चुके हैं जब बकरियों को गरीबों की गाय कहा जाता था, अब बकरियों से मीट के अलावा दूध के लिए भी पाला जाता है. इसका दूध पशु पालकों के लिए मुनाफे का सौदा भी साबित हो रहा है. ये कहा जा सकता है कि कुछ वक्त से बकरी के दूध की डिमांड ने बकरी पालन को बहुत ही खास बना दिया है. यही वजह है कि मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़कर कई युवा बकरी पालन की ओर आकर्षित हुए हैं. सरकारी आंकड़ों की मानें तो देश में 37 नस्ल की बकरियां हैं, लेकिन दूध-मीट की डिमांड और वातावरण के हिसाब से पालने के लिए उनकी नस्ल का पशु पालक करते हैं.
भारत में पाई जाने वाली ब्लैक बंगाल नस्ल के बकरे के मीट के शौकीन बहुत हैं. न सिर्फ देश में बल्कि विदेशों में भी इसकी खासी डिमांड है. जब कतर में फीफा फुटबाल वर्ल्ड कप हुआ तो ब्लैक बंगाल बकरे के मीट को मेहमानों के आगे खूब परोसा गया था. हालांकि ब्लैक बंगाल ही नहीं बल्कि बरबरे और बीटल बकरों के मीट की भी डिमांड कम नहीं रहती है. यहां ये भी जान लें कि सबसे ज्यादा एक दिन में 5 से 6 लीटर दूध देने वाली नस्ल बीटल ही है.
देश में बकरियों की नस्ल और उनकी संख्या पर गौर करें तो ब्लैक बंगाल की संख्या 3 करोड़ है. जबकि मारवाड़ी-50 लाख, बरबरी-47 लाख, उस्मानाबादी-36 लाख, जमनापरी-25.50 लाख, सिरोही-19.50 लाख, कन्नीआड़ू-14.40 लाख, बीटल-12 लाख, मालाबारी-11 लाख,
गद्दी- 7.38 लाख, जखराना 6.5 लाख, कच्छी- 5.84 लाख, सेलम ब्लैक- 4.92 लाख, मेहसाणा 4.25 लाख, झालावाणी-4 लाख, कोड़ी आड़ू- 4 लाख, गोहिलवाणी- 2.90 लाख, सुरती- 2.31 लाख, गंजम- 2.11 लाख, चांगथांगी- 2 लाख, संगानेरी- 1.63 लाख है.
कुछ तथ्य यहां पढ़ें
भारत में बकरियों की कुल 37 नस्ल रजिस्टर्ड हैं. जबकि मीट के साथ अब दूध के लिए भी बकरी पालन देश में बढ़ रहा है. वहीं गद्दी, चांगथांगी और चेगू नस्ल के बकरे पश्मीबना के लिए पाले जा रहे हैं. बता दें कि हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में बकरों से बोझा भी ढोया जाता है. महात्मा गांधी गोहिलवाणी नस्ल की बकरी पालते थे. साल 2020-21 में दूध देने वाली बकरियों की संख्या 3.63 करोड़ थी. वहीं साल 2020-21 ।में बकरियों ने 62.61 मीट्रिक टन दूध दिया था. अब देश के कुल मीट उत्पादन में बकरियों के मीट की हिस्सेदारी 14 फीसद है. साल 2020-21 में बकरे के मीट का कुल 12 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था.
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