नई दिल्ली. दक्षिण पंजाब में बंजर जमीन पर खारे पानी के जलभराव में जीरो आमदनी वाली जमीन पर जलीय कृषि का उपयोग किया जा रहा है. ये सफलता गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय की अनुसंधान एवं विकास पहलों के कारण मिली है. जिसमें मछली और झींगा पालन के माध्यम से 50 हजार से 5 लाख रुपये प्रति एकड़ का मुनाफा कमाया जा सकता है. यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. इंद्रजीत सिंह ने बताया कि दक्षिण पश्चिम भाग फाजिल्का, श्री मुक्तसर साहिब, बठिंडा, मानसा और फरीदकोट जिले में जमीन के अंदर के पानी के खारेपन और जलभवराव के कारण मजूदरी करने को मजबूर किया है, लेकिन पानी की भरमार मात्रा के कारण यहां जलीय कृषि की बहुत संभावना है.
उन्होंने कहा कि, जिसके कारण खारे पानी (आईएसडब्ल्यू) में मछली और झींगा पालन हुआ. गांव शजराना (2013) में आईएसडब्ल्यू में वन्नामेई झींगा पालन के सफल परीक्षण के बाद, यूनिवर्सिटी ने जिला फाजिल्का के गांव पंचांवाली (2014) में पहला कामर्शियल झींगा प्रोडक्शन टेस्ट को सफलता के साथ किया. नमक प्रभावित बंजर भूमि के आर्थिक उपयोग की संभावित गुंजाइश और झींगा पालन की सफलता को देखते हुए, राज्य सरकार ने विश्वविद्यालय और हरियाणा में आईसीएआर-केंद्रीय मत्स्य शिक्षा संस्थान के क्षेत्रीय केंद्र के तकनीकी मार्गदर्शन में श्री मुक्तसा साहिब जिले के गांव रत्ता खेड़ा में झींगा पालन की शुरुआत साल 2016 में की. यूनिवर्सिटी के सक्रिय प्रयासों और पंजाब के मत्स्य विभाग (डीओएफ) की प्रचार योजनाओं के साथ, झींगा पालन 1 एकड़ से बहुत तेजी से बढ़कर 2023 में 1315 एकड़ हो गया.
झींगा पालन को मिल रहा बढ़ावा
डॉ. मीरा डी अंसल, डीन, फिशरीज कॉलेज ने बताया कि यूनिवर्सिटी द्वारा पिछले 10 वर्षों के दौरान पानी का टेस्ट, बीज टेस्ट और क्षमता निर्माण ने अंतर्देशीय खारे क्षेत्रों में जलीय कृषि के विकास को कंफर्म किया है. यूनिवर्सिटी ने पिछले 5 वर्षों में झींगा किसानों के लगभग 1500 जल और 2500 झींगा नमूनों का परीक्षण किया और लगभग 300 लोगों को झींगा पालन में प्रशिक्षित किया. विश्वविद्यालय युवाओं के बीच उद्योग को भी बढ़ावा दे रहा है, जिसमें यूनिवर्सिटी से स्नातक युवा मत्स्यपालन और पशु चिकित्सा पेशेवर शामिल हो सकें और इस उद्देश्य के लिए, विश्वविद्यालय ने 2022 में जिला फाजिल्का में तीन झींगा पालन प्रदर्शन आयोजित किए, जिसमें स्टोरेज के साथ बेचने की रणनीतियों के माध्यम से तमाम जोखिमों को कम करने का काम किया है.
हर एकड़ में हो सकता है 6 टन झींगा
किसानों के लाभ मार्जिन को सुरक्षित करने के लिए बायो सिक्योरिटी उपायों और उत्पादन लागत में कमी लाने पर मुख्य ध्यान दिया गया. किसानों ने झींगा पालन को अपनाया और 2 साल की अवधि में अपने झींगा पालन क्षेत्रों को 1 एकड़ से बढ़ाकर 3-4 एकड़ कर लिया. झींगा एक्सपोर्ट भी होता है और भारत दुनिया के शीर्ष 2 झींगा एक्सपोर्टर में है. उत्तर-पश्चिम भारत के खारे पानी के क्षेत्रों को भविष्य के झींगा हब के रूप में देखा जा रहा है, जो इंटरनेशनल मानकों के मुताबिक झींगा का प्रोडक्शन करने के लिए एक बिल्कुल सही है. दक्षिण पश्चिम पंजाब में लगभग 1.51 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जमीन के अंदर खारा पानी है. यदि प्रभावित क्षेत्र का 2 फीसदी (3000 हेक्टेयर) झींगा पालन के अंतर्गत लाया जाता है, तो लगभग 500 करोड़ रुपये की कीमत का लगभग 18,000 टन झींगा 6 टन प्रति हेक्टेयर के हिसाब से किया जा सकता है.
10 लाख रुपये तक हो सकता है फायदा
झींगा पालन एक आकर्षक बिजनेस है. यदि उत्पादन से लेकर बेचने तक सब कुछ ठीक रहा, तो 4 महीने की फसल से 10 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक का फायदा हो सकता है. लाभ कमाया जा सकता है. इसके अलावा, राज्य में आईएसडब्ल्यू जलीय कृषि के सतत विकास के लिए, विश्वविद्यालय समुद्री बास, सजावटी मछली और समुद्री खरपतवार जैसी नई प्रजातियों को शामिल करके इस क्षेत्र में विविधता लाने की उम्मीद कर रहा है. डॉ. इंद्रजीत सिंह ने कहा कि उत्तरी राज्यों में घरेलू खपत को बढ़ावा देने, उत्पादन लागत को कम करने और अंतरराष्ट्रीय विपणन चुनौतियों को ठीक करने के लिए राज्य के संबंधित विभागों और एजेंसियों को आवश्यक नीतिगत कार्रवाई का प्रस्ताव दिया गया है.
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