नई दिल्ली. पशु चाहे कोई भी अगर उसे बीमारी लग जाए तो फिर पशुपालकों को बहुत नुकसान होता है. सबसे पहला नुकसान ये होता है कि पशु प्रोडक्शन कम कर देता है. इसके अलावा दूसरा सबसे बड़ा नुकसान ये होता है कि उसकी मौत हो जाती है. अब जब पशु की मौत हो जाती है तो यही सबसे बड़ा नुकसान पशुपालकों को होता है. मसलन अगर पशु पालक भेड़ पाल रहा है तो एक भेड़ के मरने से उसे एक झटके में 10 से 20 हजार रुपये का नुकसान हो सकता है. इसलिए जरूरी है कि पशुपालकों को बीमारी और कम से कम उसके लक्षण के बारे में पता होना चाहिए ताकि उसका इलाज किया जा सके.
बात की जाए भेड़ पालन की तो भेड़ पालक ऊन, मीट और दूध से कमाई करते हैं. भेड़ में ऐसी कई बीमारी है लेकिन कुछ ऐसी बीमारियां हैं जो बेहद खतरनाक होती है. इसलिए इन बीमारियों का इलाज होना बहुत जरूरी है. उसी में से यहां तीन बीमारियों का जिक्र इस आर्टिकल में किया जा रहा है. इसमें ब्लैक लेग/ब्लैक क्वार्टर, ब्लूटौंज और बोटुलिज़्म है. यहां नीचे पढ़ें इन तीन बीमारियों के बारे में.
ब्लैक लेग/ब्लैक क्वार्टर
इस बीमारी में फोकल गैंग्रीनस, वातस्फीति मायोसिटिस, भूख में कमी, उच्च मृत्यु दर, जांघ के ऊपर क्रेपिटस सूजन, चीरा लगाने पर गहरे भूरे रंग का तरल पदार्थ निकलता है. इस बीमारी में बुखार होता है. बुखार 106-108 एफ होता है. प्रभावित पैर में लंगड़ापन, कूल्हे के ऊपर क्रेपिटिंग सूजन, पीठ पर क्रेपिटस सूजन, कंधे पर रेंगने वाली सूजन होती है.
ब्लूटौंज
इस बीमारी में तापमान का अधिक बढ़ना, लार और लार निकलना, लार का गिरना, थूथन सूखना और जला हुआ दिखना आम बात है. वहीं गर्दन और पीठ का फटना भी रहता है. जीभ का सियानोटिक और नीला दिखना, गर्भपात, थन में सूजन और थनों में घाव, होंठ, जीभ और जबड़े में सूजन, बुखार , नाक से स्राव, लंगड़ापन आदि इसके लक्षण हैं.
बोटुलिज़्म
बोटुलिज़्म बीमारी में गतिशील मांसपेशियों की कमजोरी सबसे मुख्य कारण में से एक है. अंगों को प्रभावित करने वाला यानि बॉडी एक साइड में पैरालाइसिस हो जाता है. सिर और गर्दन में असंयम दर्द होता है. इसके चलते भेड़ को उठने और उठाने में असमर्थता होता है. वहीं चबाना और लार का गिरना आम बात है.
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