नई दिल्ली. आमतौर पर ये देखा गया है और एक्सपर्ट भी ये कहते हैं कि गाय-भैंस और पोल्ट्री के मुकाबले बकरियां जल्दी बीमार नहीं होती हैं. उन्हें बीमारियां भी जल्दी से नहीं घेर पाती हैं. यही वजह है कि बकरी पालक अक्सर बेपरवाह हो जाते हैं. जबकि यदि बकरियों के लिए थोड़ा सा और अलर्ट हो जाया जाए तो बाकी बचे जोखिम को भी बहुत ज्यादा कम किया जा सकता है. बकरी पाल को वक्त से बकरियों की जांच करना चाहिए. उन्हें तय वक्त पर टीके लगवाना और बीमार होने पर सही दवा दी जानी चाहिए.
ऐसा करने से बकरियों में मृत्यु दर न के बराबर रह जाती है. इसी विषय पर बकरी पालकों को जागरुक करने के लिए केन्द्रीोय बकरी अनुसंधान संस्था न (सीआईआरजी), मथुरा समय-समय पर जागरुकता कार्यक्रम चलाता रहता है. जहां बकरियों से जुड़ी तमाम जानकारियां लोगों को बताई जाती है. इससे जुड़ी कुछ बातों पर आप गौर करें और इसका फायदा उठाएं. सीआईआरजी, मथुरा के मुताबिक खुरपका, बकरी की चेचक, बकरी की प्लेग जैसी बीमारियों समेत पैरासाइट से बकरियों को महफूज किया जा सकता है. ऐसा करने के लिए वक्त पर अलर्ट होना जरूरी है. जरा सी भी लापरवाही होने पर एक बकरी में हुई बीमारी पूरे फार्म पर फैल सकती है.
खुरपका से 3 से 4 महीने की उम्र पर. बूस्टेर डोज पहले टीके के 3 से 4 हफ्ते बाद. 6 महीने बाद दोबारा दिया जाना चाहिए.
बकरी चेचक- 3 से 5 महीने की उम्र पर. बूस्टेर डोज पहले टीके के एक महीने बाद. हर साल लगवाना चाहिए.
गलघोंटू- इसके लिए 3 महीने की उम्र पर पहला टीका. बूस्टूर डोज पहले टीके के 23 दिन या 30 दिन बाद लगता है.
पैरासाइट कुकडिया रोग- दो से तीन महीने की उम्र पर दवा पिलाई जाती है. जबकि 3 से 5 दिन तक इसे पिलाएं. 6 महीने की उम्र पर दवा पिलाएं.
डिवार्मिंग- 3 महीने की उम्र में दवाएं दें. बरसात शुरू होने और खत्मे होने पर दें. सभी पशुओं को एक साल दवा पिलाएं.
डिपिंग- दवाई सभी उम्र में दी जा सकती है. सर्दियों के शुरू में और आखिर में दें. सभी पशुओं को एक साल नहलाएं.
रेग्यूललर जांच
ब्रुसेल्लोलसिस- 6 महीने और 12 महीने की उम्र पर जांच कराई जाए. जो पशु संक्रमित हो चुका है उसे गहरे गड्डे में दफना देना चाहिए.
जोहनीज (जेडी)- 6 महीने और 12 महीने की उम्र पर जांच कराएं. संक्रमित पशु को फौरन ही झुंड से अलग कर दें.
टीकाकरण कार्यक्रम
पीपीआर (बकरी प्लेसग)- 3 महीने की उम्र पर. बूस्ट र की जरूरत नहीं होती है. 3 साल की उम्र पर दोबारा लगवा देना चाहिए.
इन्टेररोटोक्सपमिया- 3 से 4 महीने की उम्र पर. बूस्टरर डोज पहले टीके के 3 से 4 हफ्ते बाद. हर साल एक महीने के अंतर पर दो बार लगवाना चाहिए.
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