नई दिल्ली. आज गेहूं, सरसों की फसल के साथ पशु पालन से किसान अपनी इनकम को डबल कर रहे हैं. भारत में मौजूदा वक्त में बकरी पालन छोटे और सीमांत किसानों के लिए आय का प्रमुख स्रोत बन गया है. हालांकि बकरी पालन की कामयाबी इस बात पर डिपेंड करती है कि बकरियों को कैसा आहार खिलाया जा रहा है, बकरियों का ख्याल किस तरह रखा जा रहा है. उन्हें बीमारी से किस तरह से बचाया जा रहा है. अगर बकरियों को आहार सही न मिले और वह बीमार पड़ जाएं तो न सिर्फ बकरी पालन से आने वाला मुनाफा घट जाएगा. बल्कि बकरी पालक को नुकसान भी उठाना पड़ सकता है. ऐसे में बकरी पलकों को यह पता होना चाहिए कि कब कौन सी बीमारी का खतरा उनकी बकरियों को रहता है. इस आर्टिकल में कुछ बीमारियों का जिक्र किया जा रहा है.
पीपीआर रोग में बकरियों को तेज बुखार और सर्दी खांसी की शिकायत हो जाती है. वहीं नाक से चिपचिपा हुआ स्राव आता है. मसूड़े, होठों और जबड़े पर उभरे हुए दानेदार दाने, जीब में कालापन, पतले दस्त और गर्भपात की समस्या होती है. जब यह बीमारी हो जाती तो इसका 100 फीसदी प्रभावी उपचार नहीं है. बीमारी से चार महीना पहले से टीकाकरण करवाना चाहिए. जिसकी प्रतीक्षा अवधि 3 वर्ष की होती है.
इंटेरोटाॅनिक्सीमिया की बीमारीः इस रोग में बकरियों के मुंह से झाग, लार गिरने लगती है. हरे दस्त होते हैं. बकरी में लड़खड़ाहट, सांस लेने में कठिनाई होती है. पेट में दर्द, 12.14 घंटे के भीतर पशु की मौत हो जाती है. इस बीमारी का इलाज संभव नहीं है. 4 महीना पहले इसका भी टीकाकरण करवाना चाहिए. फिर दो हफ्ते बाद बूस्टर और फिर हर साल बूस्टर लगाना चाहिए.
मुंहपका खुरपका रोगः मुंह पका और खुर पका एफएमडी रोग के ये लक्षण प्रमुख हैं. इसमें पशु को तेज बुखार, लार गिरना, मुंह में घाव, खाने-पीने में कमी जैसी समस्याएं होती हैं. इसके उपचार की बात की जाए तो इलाज के लिए नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क करें. बचाव का विशेष ध्यान रखना चाहिए. इस रोग की अभी तक कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है.
बकरी माता बीमारीः बकरी माता रोग में शरीर पर दानेदार फुंसियां या मां जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. विशेष के शरीर मुंह थन के नीचे ठंड लगती है. नाक से चिपचिपा पदार्थ निकलता है. इलाज के के लिए नजदीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क करना चाहिए. बचाव का विशेष ध्यान रखें. इस रोग के लिए वैक्सीन उपलब्ध नहीं है.
Leave a comment