नई दिल्ली. लाला लाजपत राय पशु-चिकित्सा एवं पशु-विज्ञान विश्वविद्यालय (लुवास), हिसार में विश्व पशुचिकित्सा दिवस मनाया गया. कार्यक्रम में सेमिनार का भी आयोजन किया गया, जिसमें पशु चिकित्सकों से लेकर पशु पालकों ने अपने विचार रखे. सेमिनार में एक बड़ी बात सामने आई है कि 73 फीसदी संक्रमक रोग पशुओं से फैल रहे हैं. इसके लिए सभी को मिलकर काम करने की जरूरत बताई. बता दें कि इमर्जिंग डिजीज एक उभरती हुई संक्रामक बीमारी (ईआईडी) है. यही वजह है कि वर्तमान में मानव संक्रामक रोगों में से करीब दो तिहाई के लिए पशु की बीमारियां जिम्मेदार हैं. आंकड़ों की बात करें तो इससे लाखों लोगों की मौत भी हो जाती है.
कुलपति प्रो. डॉक्टर विनोद कुमार वर्मा ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों, प्राध्यापकों, विद्यार्थियों व कर्मचारियों को विश्व पशुचिकित्सा दिवस की बधाई दी और सभी से आग्रह किया कि जागरूक होकर पशु-पक्षियों के कल्याण के लिए कार्य करें क्योंकि ये प्रकृति एवं पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अति आवश्यक है. आगे उन्होंने बताया कि वर्ष 2024 के लिए विश्व पशु चिकित्सा दिवस का विषय ‘वेटेरिनरीयन आर एसेंशियल हेल्थ वर्कर्स’ है. उन्होंने बताया कि पशुचिकित्सक का रोल केवल पशु स्वास्थ्य तक ही सीमित नहीं है. पशुचिकित्सा वन वर्ल्ड वन हेल्थ के उद्देश्य हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जिसके अंतर्गत मनुष्य स्वास्थ्य एवं वातावरण स्वास्थ्य भी सम्मिलित है.
73 फीसदी इमर्जिंग डिजीज जानवरों से: कुलपति
कुलपति प्रो. डॉक्टर विनोद कुमार वर्मा ने बताया कि लाइवस्टॉक सेक्टर का 4 फीसदी ओवरआल जीडीपी व 26 फीसदी एग्रीकल्चर जीडीपी में हिस्सा है. आज के समय में 73 फीसदी इमर्जिंग डिजीज जानवरों से उत्पन्न हो रहे हैं. इसलिए पशुचिकित्सक की भूमिका अब और भी महत्वपूर्ण होती जा रही है. उन्होंने कहा कि पशु चिकित्सा व्यवसाय एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है और इससे जुड़े सभी वैज्ञानिकों को अधिक से अधिक उत्साह के साथ मानव हित के कार्यों में भी ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि हमारा हमेशा ये प्रयास रहना चाहिए कि कैसे पशु चिकित्सा के क्षेत्र में अधिक से अधिक सुधार हों व राज्य के पशुपालकों को बेहतर पशु स्वास्थ्य की सुविधाएं प्राप्त हों. ईआईडी नए पहचाने गए रोगाणुओं के कारण हो सकता है, जिससे वायरस की नई प्रजातियां याउपभेद शामिल हैं. उदाहरण के तौर पर नए कोराना वायरस, इबोलावायरस, एचआईवी आदि. कुछ ईआईडी एक ज्ञात रोगजनक से विकसित होते हैं, जैसे इन्फ्लूएंजा के नए उपभेदों के साथ होता है.
कब हुई विश्व पशु चिकित्सा दिवस
बता दें कि विश्व पशुचिकित्सा दिवस हर साल अप्रैल माह के अंतिम शनिवार को मनाया जाता है. जिसकी शुरुआत विश्व पशुचिकित्सा संघ ने वर्ष 2000 में की थी. इसी कार्यक्रम के अंतर्गत 26 अप्रैल को विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए भाषण व पोस्टर प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया. कार्यक्रम में लुवास के यूजी, पीजी व इंटर्न के छात्रों ने भाग लिया व आज 27 अप्रैल को सेमिनार का भी आयोजन किया गया. इसमें मुख्य वक्ता के तौर पर विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफ़ेसर डॉ. अजित सिंह उपस्थित हुए तथा उन्होंने “अगले दशक के पशु चिकित्सा पेशेवर: चुनौतियां और कार्य” विषय पर व्याख्यान दिया.
इन विजेताओं को मिले पुरस्कार
पुरस्कार वितरण समारोह के अवसर पर कुलपति ने सभी विजेताओं को पुरस्कार देकर सम्मानित किया. पुरस्कार प्राप्त करने वालो में भाषण प्रतियोगिता में विद्यार्थी आरजू (प्रथम), तरुण (द्वितीय) व अंशुला (तृतीय) रही. वहीं पोस्टर प्रतियोगिता में विद्यार्थी प्रीती (प्रथम), दीक्षा (द्वितीय) व रितु लाखलान (तृतीय) रहे. अधिष्ठाता पशु चिकित्सा महाविद्यालय डॉ. गुलशन नारंग, कुलसचिव डॉ. एस. एस. ढाका, मानव संसाधन एवं प्रबंधन निदेशक डॉ. राजेश खुराना, स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डॉ. मनोज रोज, डेयरी साइंस कॉलेज के अधिष्ठाता डॉ. सज्जन सिहाग, विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. वी.एस. पंवार व अन्य अधिकारी एवं विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष व विद्यार्थी उपस्थित रहे.
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