नई दिल्ली. मीट उत्पादन में कई बातों का ख्याल रखना होता है. खासतौर पर जहां मीट का प्रोडक्शन किया जाता है. वहीं कई बातों की सावधानी बरतनी चाहिए. भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) के मुताबिक अगर प्रोडक्शन में लापरवाही की जाती है तो इसका असर सीधे तौर पर लोगों की सेहत पर पड़ता है. क्योंकि लोग जो इसका सेवन करत हैं, उनकी सेहत इससे खराब हो सकती है. इसलिए बेहद ही जरूरी है कि प्रोडक्शन को बेहतर तरीका से किया जाए इसमें लापरवाही न बरती जाए.
FSSAI के एक्सपर्ट के मुताबिक उप-उत्पादों की सफाई, निरीक्षण और खाद्य उप-उत्पादों की पैकिंग की सुविधाओं को एकीकृत किया जाना चाहिए. वहीं न खाने वाले चीजें और अनुपयोगी भागों को रेंडरिंग प्लांट तक पहुंचाया जाना चाहिए.
कितन बातों का ध्यान देना है जरूरी
एक्सपर्ट के मुताबिक हर एक काम के लिए अनुभवी लोगों से काम लिया जाना चाहिए.
सिर्फ स्वस्थ पशुओं को ही बूचड़खाने में प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए और पशुओं का योग्य पशुचिकित्सक द्वारा पूर्व-मृत्यु और पश्चात-मृत्यु निरीक्षण किया जाना चाहिए.
उपभोक्ताओं के लिए सिर्फ ठंडे या जमे हुए पैक किए गए मांस को ही उपलब्ध कराया जाना चाहिए और मांसपेशियों को मांस में बदलने के लिए शव को चिलर में रखना चाहिए.
इस राज्य ने की पहल
बता दें कि केरल जहां मीट की खपत ज्यादा है वहां राज्य की अधिसूचित सीमाओं पर एकीकृत बूचड़खाने स्थापित किए जाने का प्लान है.
ताकि वध के लिए राज्य में प्रवेश करने वाले पशुओं का सीमा पर ही वैज्ञानिक तरीके से वध किया जा सके. जिससे राज्य के भीतर जीवित पशुओं के परिवहन को रोका जा सके। इससे रोगों के नियंत्रण में भी मदद मिलेगी.
साथ ही उभरती बीमारियों और महत्वपूर्ण जूनोटिक रोगों के संबंध में महामारी विज्ञान संबंधी अध्ययनों को सुगम बनाने में भी मदद मिलेगी.
राज्य के भीतर उत्पन्न होने वाले पशुओं के वध के लिए प्रत्येक जिले और निगमों में कम से कम एक आधुनिक वैज्ञानिक बूचड़खाना भी स्थापित किया जाएगा.
ऐसे सभी बूचड़खानों में बताई गई सभी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध होंगी.
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