Home पशुपालन सोलर विंड कंपनियों के चलते लाखों भेड़-बकरी और ऊंटों के सामने चारे का संकट, सड़कों पर उतरे लोग
पशुपालन

सोलर विंड कंपनियों के चलते लाखों भेड़-बकरी और ऊंटों के सामने चारे का संकट, सड़कों पर उतरे लोग

Wind Plant in Jaisalmer, Oran, Jaisalmer, Oran Team Jaisalmer, Oran Sangh
जैसलमेर में ओरण या गोचर भूमि

नई दिल्ली. कालरां कुआं जैसलमेर की रामगढ़ तहसील की राघवा ग्राम पंचायत में आया हुआ है. कालरां कुल तीन कुओं का समूह है. पहला कालरां तला (कुआं), दूसरा भभूते का तला, तीसरा सांयतों का तला साथ ही कुछ तालाब भी हैं. जलदाय विभाग ने भी पशुधन की बहुलता देख दो नलकूप लगवाए हैं.जैसलमेर कम वर्षा वाला क्षेत्र है इसलिए यहां खेती कम और पशुपालन अधिक है. पशुपालन के लिए ही स्थानीय जन ने अपने चारागाहों (ओरण- गोचर) में यह कुएं बनाएं, जिससे उन्हें व उनके पशुधन को पानी मिल सके. कुछ कुओं में पीने योग्य व कुछ में कम पीने योग्य पानी भी है लेकिन यहां के मजबूत लोगों ने ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भी जीवन आबाद रखा. जैसलमेर के इन सीमावर्ती विशाल चारागाहों में सदियों से ऐसे सैकड़ों कुएं है, जिनके जल से आमजन का जीवन चलता है.पशुधन पलता है.

पशुपालन ही थार के इस क्षेत्र का पीढ़ियों से प्रमुख रोजगार है. पहले यहां गाय व ऊंट प्रमुख पशुधन हुआ करता था लेकिन जब से ट्रेक्टर व गाड़ियां आई हैं बैल और ऊंट की आवश्यकता कम हो गई. अब इनकी जगह भेड़ और बकरी ने ले ली है. गाय और ऊंट अब भी इस क्षेत्र में बहुतायत में है लेकिन पालतू कम आवारा ज्यादा हैं. यहां से बेदखल कर बेरोजगार करके चुकाई जा रही है. पशुपालकों के पशुधन के साथ – साथ यहां असंख्यों वन्यजीव हैं. पेड़-पौधे हैं.

दूध्स-दही से होती है आय
एक-एक पशुपालक के पास सैकड़ों से हजारों की संख्या में पशुधन हैं. जिंनमें भेड़-बकरी अधिक व गाय- ऊंट और गधे कम हैं. पशुधन के क्रय-विक्रय एवं पशुओं से मिलने वाले उत्पाद दूध-दही-घी और ऊन से पशुपालकों को अच्छी आय होती है. इसी आय से स्थानीय पशुपालकों के घर चलते हैं.

उपयोगहीन जमीन बताकर सोलर व विंड कंपनियों को आवंटित कर रही
थार के इस सीमावर्ती क्षेत्र में न तो शिक्षा है और न रोजगार, ऐसे में पशुपालन ही यहां का प्रमुख रोजगार है जो यहां के इन सीमावर्ती चारागाहों पर चलता है. यहां के यह चारागाह, ओरण और गोचर है लेकिन सरकारी रिकॉर्ड में सरकारी ज़मीनों के नाम से दर्ज है जिन्हें सरकार बंजर एवं उपयोगहीन बताकर सोलर व विंड कंपनियों को आवंटित कर रही है.स्थानीय पशुपालकों के पेट पर लात मार रही है. रियासत काल में इन जमीनों के लिए इन्ही के पूर्वजों ने शीश कटवाए और काटे भी थे.

सेना भी करते रहे हैं यहां के लोग सहयोग
आजादी के बाद जब इस थार में सेना समय पर नही पहुंच पाती थी तब यह पशुपालक ही थार के प्रथम प्रहरी बनते थे. यहां का हर पशुपालक सदैव देश के प्रति समर्पित और सेना के लिए सहयोगी रहा है. आज इनके सहयोग और समर्पण की कीमत इन्हें यहां से बेदखल कर बेरोजगार करके चुकाई जा रही है. पशुपालकों के पशुधन के साथ – साथ यहां असंख्यों वन्यजीव हैं. पेड़-पौधे हैं, वनस्पति हैं, घास हैं झाड़ी हैं जो स्थानीयता को जीवित रखें हैं.मिलावट के इस युग में शुद्ध दूध- दही-घी और मांस है तो यहीं है.

सरकार को सबको मिलकर जगाना होगा
इन चारागाह जमीनों का सोलर-विंड-खनिज एवं केमिकल कंपनियों को जाना यहां के पर्यावरण-प्रकृति-पशुधन-वन्यजीवन व मानवजीवन के साथ कुठाराघात है.धरती पर अगर शुद्धता बची है तो यही हैं. शुद्ध वातावरण, शुद्ध पर्यावरण, शुद्ध प्रकृति, शुद्ध आहार, शुद्ध व्यवहार, शुद्ध उत्पाद जिसे बचाना हम सब के लिए जरूरी है. यह तब ही सम्भव होगा जब सरकार जगेगी. सरकार को हमें मिलकर जगाना होगा.

जैसलमेर में पशु ही व​हां के लोगों की अजीविका का साधन है. जब सरकार इन ओरण को ही समाप्त कर देगी तो ये पशु कहां चरने के लिए जाएंगे. जब पशु नहीं बचेगा तो लोगों की अजीविका कैसे चलेगी. हम किसी भी कीमत पर विंड कंपनियों को ये जमीन नहीं देने देंगे. इसलिए हमें कुछ भी करना पड़े.
सुमेर सिंह संवाता, संस्थापक, ओरण टीम जैसलमेर राजस्थान

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Animal Husbandry: Father of 30 thousand children earns Rs 25 lakh per month from this buffalo and its price is Rs 10 crore.
पशुपालन

Animal News: ये काम करें, फूल दिखाने की नहीं आएगी दिक्कत, डिलीवरी के बाद इंफेक्शन ऐसे रोकें

जिससे फूल दिखाने की समस्या नहीं होती है. इस बात का पशुपालकों...