नई दिल्ली. देश में आज पशुपालन तेजी से किया जा रहा है. दूध और डेयरी की बढ़ती मांग को देखते हुए शहर हो या देहात सभी जगहों पर पशुपालन किया जा रहा है. देश में गायों की अलग ही पहचान है, या फिर ये कहें कि पुराने समय से ही गाय पालन किया जा रहा है. आज गाय पालन करना इतना सरल है कि हर कोई गाय पालन करना चाह रहा है. देश में गायों की कई नस्ल हैं. इन नस्लों में कुछ गाय ऐसी भी हैं, जो 20 लीटर तक दूध देती हैं. ऐसी गायों को पालन पशुपालक अपनी इनकम को बढ़ा रहे हैं. आज हम आपको बिहार की ऐसी ही नस्लों के बारे में जानकारी दे रहे हैं. ये गाय हैं गंगातीरी और बछौर गाय. इन गायों की अपनी अलग ही पहचान है. आइये जानते हैं इन गायों के बारे में और अधिक जानकारी.
गाय का दूध हमेशा से ही पौष्टिक और स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना गया है. आज गाय की कई उन्नत नस्लों के चलते हर कोई पशुपालक अच्छी गायों को पालना चाहता है. गायों से कई तरह का उपयोग किया जाता है. गौमूत्र का उपयोग खाद के लिए, कीटनाशक दवाओं के लिए किया जा जाता है. वहीं गोबर से आजकल खाद भी बनाई जा रही है. बिहार में पाई जाने वाली नस्लों की बात करें तो यहां गंगातीरी और बिछौर गाय की अपनी अलग पहचान है.
गंगातीरी गाय के बारे में: गंगातीरी गाय यूपी में पूर्वांचल से बिहार तक गंगा नदी के किनारे पाई जाने वाली गाय है. इन गायों की खासियत ये है कि ये काफी दुधारू होती हैं. इन गायों को पालने में लागत भी कम आती है. पहले गंगातीरी गाय पूर्वांचल और पश्चिमी बिहार में किसान घर-घर पालते थे. अब साहीवाल जैसी ज्यादा दूध देने वाली गायों की नस्लें आने के कारण गंगातीरी पालन पर भारी असर पड़ा है. ये गाय अब बिहार के रोहतास और भोजपुर जिले प्रमुख रूप से पाई जाती हैं. इनकी पहचान इनके सफेद या हल्के भूरे रंग के कोट से होती है. गहरा चेहरा होता है और इनके कंधे भी गहरे होते हैं. नर में पिछला हिस्सा गहरा होता है. इन गायों का चेहरा लंबा होता है. संकीर्ण माथा होता है. मध्यम आकार, घुमावदार सींग होते हैं और कान मध्यम आकार के होते हैं. ये गाय आठ से दस लीटर तक दूध दे सकती हैं. इनका पालन कम खर्च में किया जा सकता है.
बाचौर गाय की पहचान: बिहार में बाछौर गाय की नस्ल की गाय दुग्ध उत्पादन में कुछ होती हैं. इनका एक ब्यांत का अंतराल लगभग 250 से 260 दिन का होता है. इस नस्ल की गाय औसतन लगभग 500 से 600 लीटर दूध देती हैं. बाचौर नस्ल की गाय विशेष रूप से बिहार राज्य के मधुबनी, दरभंगा, सीतामढ़ी, समस्तीपुर सहित मुजफ्फरपुर में पाई जाती है. इस नस्ल की गाय केवल नेपाल की सीमा से सटे सीतामढ़ी जिले के बाचौर व कोलीपुर भाग में ही रह गई हैं. इनके दूध उत्पादन की क्षमता कम होने से ये नस्ल अब कम पाली जा रही है. इन गायों का मध्यम आकार का सुगठित शरीर होता है. सफेद कोट, सफ़ेद पलकें होती हैं. मध्यम आकार के सीधे सींग होते हैं. गुलाबी थूथन, सींग, खुर होते हैं और सफेद स्विच के साथ मध्यम आकार की पूंछ होती है.
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