नई दिल्ली. आजकल बकरी पालन बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. बकरी पालन दोहरे उद्देश्य के लिए किया जाता है. एक तरफ इनसे दूध मिलता है, वहीं दूसरी तरफ बकरों से मीट मिलता है. कई बीमारियों में बकरी का दूध लाभकारी होने के चलते आज देहात ही नहीं बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी बकरी पालन किया जा रहा है. बकरी पालन सरल होता है. किसी भी पशुपालन में अच्छी नस्ल और अच्छी सेहत का पशु पशुपालक को मुनाफा देता है. बकरियों को पालन दूध और मीट के लिए किया जाता है. आज हम बात कर रहे हैं जम्मू कश्मीर की एक ऐसी नस्ल की बकरी जो कम खर्च में पाली जा सकती है और मीट के लिए मशहूर होती है. ये है भाकरवाली बकरी. एक विशेष प्रकार की बकरी की नस्ल है जो जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है. बकरियों की खासियत होती है, कि ये कम खर्च में पल जाती हैं. बकरियों से एक से डेढ़ साल में अच्छी कमाई ली जा सकती हैं.
भाकरवाली बकरी की खासियत भाकरवाली बकरी भारत की एक बकरी नस्ल है, जिसे हाल ही में 34वीं बकरी नस्ल के रूप में पंजीकृत किया गया है. यह एक पहाड़ी बकरी की नस्ल है जो जम्मू-कश्मीर में पाई जाती है. यह नस्ल दूध, मांस और फाइबर के उत्पादन में उच्च तापमान प्रतिरोध और कम इनपुट प्रणाली में श्रेष्ठ है.
यहां पाई जाती है ये नस्ल: भाकरवाली बकरी जम्मू-कश्मीर के पहाड़ी इलाकों में पाई जाती है. एक वयस्क मादा बकरी का वजन 25 किलोग्राम से 35 किलोग्राम के बीच होता है. वहीं एक वयस्क नर बकरी का वजन 35 किलोग्राम से 45 किलोग्राम के बीच होता है. यह बकरी दूध भी देती है, लेकिन यह अन्य बकरियों की तरह अधिक दूध नहीं देती है. यह बकरी कम खाने और पानी के साथ भी अच्छी तरह से जीवित रह सकती है.
कम रखरखाव: बकरियों की इस नस्ल में अन्य नस्लों की तुलना में न्यूनतम देखभाल की आवश्यकता होती है. यहां तक कि व्यापक प्रबंधन प्रणालियों के तहत भी पनपते हैं. ये नस्ल बच्चे देने के लिए भी अच्छी जानी जाती है. बकरी पालन में अच्छे आहार को शामिल करने पर इनसे दूध और मीट अच्छी मात्रा में मिल जाता है. बकरी को पालने के लिए कम चारे की जरूरत होती है. इन्हें खुले में चरा सकते हैं. वहीं घर की रसोई से भी इनके खाने का इंतजाम किया जा सकता है. ऐसे में बकरी पालन सरल हो जाता है.
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