नई दिल्ली. गुजरात में सौराष्ट्र क्षेत्र के काठियावाड़ प्रायद्वीप के काठियावाड़ी घोड़े रेगिस्तानी युद्ध घोड़े पाए जाते हैं. राजस्थान के मारवाड़ी घोड़ों से इनकी बहुत समानता है. अब इन्हें देश की इंडियन आर्मी और पुलिस घोड़े के रूप में उपयोग किया जाता है. वहीं एक और नस्ल है कच्छी घोड़े की, ये रेगिस्तान के घोड़े के रूप में जाना जाता है. आइये जानते हैं इन दोनों के बारे में. मारवाड़ क्षेत्र में ये घोड़ा घुड़सवार घोड़े के रूप में पूरे इतिहास में इस्तेमाल किया गया है. मारवाड़ी युद्ध में अपनी वफादारी और बहादुरी के लिए विख्यात हैं. महाराणा प्रताप का चेतक घोड़ा भी मारवाड़ी नस्ल का था, जो अपने स्वामी भक्ति के लिए और बहादुरी के लिए विख्यात हुआ था. उसी की नस्ल का घोड़ा आज जोधपुर के कृषि विश्वविद्यालय में आयोजित किसान मेले में प्रदर्शनी में लाया गया था. वहीं कच्छी-सिंधी घोड़ा शुष्क और अर्द्धशुष्क मौसम में खुद को ढाल लेता है. इन घोड़ों की बनावट बेहद आकर्षक होती है.
काठियावाड़ी या काठियावाड़ी एक भारतीय नस्ल का घोड़ा है. यह पश्चिमी भारत में गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में उत्पन्न होता है. उस क्षेत्र के काठी लोगों से जुड़ा हुआ है. इसे मूल रूप से लंबी दूरी पर, उबड़-खाबड़ इलाकों में, न्यूनतम राशन पर उपयोग के लिए रेगिस्तानी युद्ध के घोड़े के रूप में पाला गया था. एक और नस्ल है जो इस घोड़े की बहुत करीबी है, ये है मारवाड़ी घोड़ा. मारवाड़ी घोड़े की हाइट भी बड़ी होती है. मारवाड़ी घोड़े की खासियत है कि उसके दोनों कान आपस में टच करते हैं. अब राजस्थान के साथ-साथ अन्य राज्यों के लोग भी मारवाड़ी घोड़े को पालना शुरू कर चुके हैं.
काठियावाड़ी घोड़े की खासियत: काठियावाड़ी घोड़े बहुत अच्छे खेल के घोड़े भी हैं. ऐसा कहा जाता है कि इसकी उत्पत्ति पश्चिमी भारतीय प्रायद्वीपीय प्रांत काठियावाड़ से हुई है. जो खंबात और कच्छ की खाड़ी के बीच स्थित है. जाहिर है, इसकी उत्पत्ति के स्थान ने घोड़े को यह नाम दिया. काठियावाड़ी में चेस्टनट और बेज रंग होता है. कठियावाड़ी घोड़े की नस्ल काफी अच्छी मानी जाती है. इस घोड़े का इलाका गुजरात के राजकोट, अमरेली और जूनागढ़ जिला है. इसका रंग ग्रे और गर्दन लम्बी होती है। यह घोड़ा 147 से.मी. ऊंचा होता है.
कच्छी घोड़े की खासियत: कच्छी ब्रीड रेगिस्तान का घोड़ा है. इसमें रेगिस्तान में खुद को ढालने की गजब की क्षमता होती है. इसकी शारीरिक बनावट ऐसी होती है, कि ये रेगिस्तान की गर्मी में खुद को जिंदा रख सकता है.इस नस्ल को अक्सर भारत का मस्टैंग (जंगली घोड़ा) कहा जाता है. इसकी नाक पर कवच होता है, जिससे इसकी सहनशक्ति बढ़ती है. नाक रोमन जैसे और मुड़े हुए कान होते हैं, जोकि एक-दूसरे को छूते नहीं हैं. लम्बाई 56 से 60 इंच की होती है। वहीं, इनकी पीठ छोटी होती है.
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