नई दिल्ली. भेड़ पालन मुनाफे का बिजनेस होता है. भेड़ की ये भी खासियत होती है कि कम खर्च में पल जाती हैं. ये ऐसी जगह चरती हैं जिस भूमि पर किसी अन्य पशुओं का जाना संभव नहीं होता है. भेड़ पौधों को भी नुकसान नहीं पहुंचाती हैं. इस खबर में राजस्थानी नस्ल की कुछ भेड़ों की खासियत के बारे में आपको बताते हैं, जिसके पालन से आपको फायदा हो सकता है. बकरी पालन के मुकाबले अगर आप भेड़ पालन करते हैं तो तीन तरह से कमाई कर सकते हैं. एक तो भेड़ से दूध और मीट का कारोबार तो किया ही जा सकता है. साथ ही ऊन भी प्राप्त होती है. ऊन बेचकर किसान अच्छी आमदनी कर सकते हैं. आज बात कर रहे हैं एक ऐसी भेड़ की जो राजस्थान में पाई जाती है. ये भेड़ है, मारवाड़ी भेड़.
भारत में भेड़ पालन सदियों से किया जाता है और अच्छी आय का साधन भी है. भेड़ पालन से केवल ऊन और मांस ही हासिल नहीं किया जाता है, बल्कि यह किसानों को अच्छी खासी आमदनी का जरिया भी है. इसके अलावा भेड़ की खाद भी खेतों के लिए महत्वपूर्ण होती है, जो कृषि उत्पादन को बढ़ावा देती है. भेड़ पालन करने वाले किसानों को भेड़ के दाना और पानी पर भी बहुत ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं होती है. ऐसी जगह चरती है, जहां पर अन्य पशु नहीं जा पाते हैं. कई गैरजरूरी खरपतवार का भी इस्तेमाल भेड़ अपने खाने के तौर पर करती है. मोटे तौर पर प्रतिदिन 4000 से 5000 की आय भेड़ से कमाई जा सकती है. भेड़ 200 रुपये किलोग्राम के हिसाब से बेची जाती है हर राज्य में प्रति किलो वजन के लिए अलग-अलग रेट भी होता है.
मारवाड़ी भेड़ की पहचान: राजस्थान की कुल भेड़ों में सर्वाधिक भेड़ें मारवाड़ी नस्ल की है. इसमें सर्वाधिक रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है. इन भेड़ों का प्रमुख क्षेत्र ये राजस्थान में सर्वाधिक जोधपुर, बाड़मेर, पाली, दौसा, जयपुर आदि जिलों में पाई जाती है.
देश में कई नस्लों की हैं भेड़ें: भेड़ की कई नस्ल पाई जाती हैं. सभी नस्ल हर तरह की जलवायु परिस्थितियों को झेलने के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती हैं. इसलिए स्थान और जलवायु के ध्यान में रखते ही नस्लों का चुनाव किया जाना चाहिए. अगर बात करें नस्लों की तो मांस के लिए मालपुरा, जैसलमेरी, मंडिया, मारवाड़ी, नाली शाबाबाद, छोटानागपुरी और बीकानेरी आदि को पाला जाता है. भेड़ पालन बेहद सरल होता है.
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