नई दिल्ली. विस्तार शिक्षा निदेशालय, गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, लुधियाना ने डेयरी पशुओं में खुरपका और मुंहपका रोग (एफएमडी) के प्रकोप के खिलाफ जागरूकता पैदा करने के लिए एक पैनल चर्चा का आयोजन किया. जहां एक्सपर्ट ने ये बताया कि घर में बनाया गया एक घोल पशुओं के बाड़े में खुरपका-मुंहपका रोग नहीं फैलने देता है. जिससे पशुओं को इन रोग से बचाया जा सकता है. चर्चा में विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. प्रकाश सिंह बराड़ ने कहा कि एफएमडी दो पैरों वाले जानवरों, जैसे गाय, भैंस, सूअर, बकरी और भेड़ की एक अत्यधिक संक्रामक बीमारी है और ये संक्रामक रोग पशुधन की उत्पादकता के लिए एक गंभीर चुनौती है.
वैक्सीन का बूस्टर डोज लगाना जरूरी है
डॉ. रवीन्द्र प्रसाद सिंह, निदेशक, आईसीएआर- खुरपका और मुंहपका रोग निदेशालय, भुवनेश्वर ने नियंत्रण और रोकथाम पर अपने संबोधन में कहा कि इसके नियंत्रण के लिए प्रभावी रणनीतियों की जरूरत है. इसके साथ ही डेयरी पशुओं में एफएमडी के फैलने के तरीके के बारे में विस्तार से उन्होंने जानकारी दी. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कि पशु चिकित्सकों और डेयरी किसानों को छोटे जानवरों में एफएमडी वैक्सीन की बूस्टर खुराक सुनिश्चित करनी चाहिए. क्योंकि यह वैक्सीन की एकल खुराक की तुलना में उनकी प्रतिरक्षा को कई गुना बढ़ा देती है. रोग के फैलने की स्थिति में रोग को रोकने के लिए पशुधन और मनुष्यों की प्रतिबंधित आवाजाही के साथ रिंग टीकाकरण का प्रयोग किया जा सकता है.
ये तरीका अपना सकते हैं किसान
डॉ. जजाति के महापात्र, प्रधान वैज्ञानिक, आईसीएआर- एफएमडी निदेशालय ने कहा कि पशु चिकित्सकों को एफएमडी के साथ-साथ होने वाले श्वसन संक्रमण के कारणों को पहचानना और उनका समाधान करना चाहिए. उन्होंने एफएमडी प्रकोप के दौरान डेयरी फार्मों पर सख्त बॉयो सिक्योरिटी के उपाय किए जाने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि खेत को कीटाणुरहित करने के लिए सोडा ऐश घोल का उपयोग करने से बीमारी को फैलने से रोकने में मदद मिलती है. डॉ. सिंह और डॉ. महापात्र ने बताया कि एफएमडी और हेमोरेजिक सेप्टिसीमिया का संयुक्त टीका अलग-अलग उपयोग करने की तुलना में समान रूप से प्रभावी है.
कई किसानों से चर्चा में हिस्सा लिया
उन्होंने कहा कि अगला टीकाकरण किसी फार्म पर आखिरी मामला सामने आने के एक महीने बाद फिर से शुरू किया जाना चाहिए. चर्चा में डॉ. एस.एस. रंधावा ने पहले से ही रोग से प्रभावित पशुओं के सिंप्टोमेटिक उपचार पर चर्चा की. डॉ. जे.एस. बेदी ने रोग के प्रकोप को रोकने के लिए समय पर हस्तक्षेप के लिए रोग के पूर्वानुमान और चेतावनी के महत्व को दोहराया. पशुपालन विभाग, पंजाब के उप निदेशकों सहित 50 से अधिक प्रतिभागी क्षेत्रीय रोग निदान प्रयोगशाला, जालंधर और किसानों ने चर्चा में भाग लिया.
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