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Fish Farming: ठंडे पानी में इन मछलियों को पालें और करें मोटी कमाई, डिटेल पढ़ें यहां

cold water fish
प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. कोल्ड वॉटर यानि ठंडे पानी में मछलियों का पालन करके भी अच्छी कमाई की जा सकती है. एक्सपर्ट का कहना है कि जिन इलाकों में पानी ज्यादा ठंड रहता है, मसलन पहाड़ी इलाकों में वहां पर मछली पालन करना बेहद ही मुनाफ देना वाला काम है. अगर ट्राउट मछली को ही ले लें तो इस मछली को पालने से फिश फार्मर को अच्छी इनकम हो सकती है. आमतौर पर ट्राउट मछली 14 से 15 सौ रुपये किलो में बिक जाती है. इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ठंडे पानी में मछली पालन करना कितना फायदेमंद हैं.

ठंडे पानी में पालने के लिए कई मछलिया हैं, जिसमें बेरिलियस जिसे भारतीय पहाड़ी ट्राउट के रूप में जाना जाता है, उसका नाम भी शामिल है. इस मछली की चार प्रजातियों हैं. बी. बेंडेलिसिस, बी. बोला, बी. वाग्रा और बी.गैटेंसिस. फिशरीज एक्सपर्ट कहते हैं कि भारत की पहाड़ी धाराओं में पाई जाने वाली विदेशी मछलियों में मुख्य रूप से ट्राउट, मिरर कार्प, क्रूसियन कार्प और टेनच शामिल हैं.

सल्मो गेर्डनेरी गेर्डनेरी मछली
इसे आमतौर पर इंद्रधनुष ट्राउट या स्टील हेड के रूप में जाना जाता है, यह उत्तरी अमेरिकी प्रशांत जल का मूल निवासी है और 1907 में भारत में इसे इंपोर्ट किया गया था. मौजूदा वक्त में, ये सांस्कृतिक उद्देश्य के लिए भारत में ठंडे पानी की सबसे सफल ट्राउट में से एक है. क्योंकि ये भूरे रंग के ट्राउट की तुलना में आसानी से अनुकूलित होती हैं. इसके अलावा, ये तुरंत कृत्रिम भोजन पर फीड करने लगती हैं. उच्च तापमान और और कम पानी का भी सामना कर सकती हैं.

5.5 किलोग्राम होता है वजन
इनकी इनक्यूबेशन अवधि कम होती है तथा विकास ग्रोथ का रेट तेज होता है. अच्छी तरह से खिलाए जाने पर, वे तीन साल में 400-500 मिमी की लंबाई और लगभग 5.5 किलोग्राम वजन प्राप्त करती हैं. शरीर लम्बा सिर छोटा और मुंह तुलनात्मक रूप से छोटा होता है. शरीर का रंग बदलता रहता है. जो सेक्स और पर्यावरण पर निर्भर करता है. यह आमतौर पर नदी की मछली है लेकिन इसकी खेती सीमित जल में भी की जा सकती है. यह तालाबों में प्रजनन नहीं करती है लेकिन कृत्रिम फर्टीनाइजेशन संभव है. इनका मुख्य भोजन प्लवक होता है लेकिन इनमें आधे से ज्यादा मछलियां मांसाहारी होती हैं.

सल्मो ट्रुटा फारियो या ब्राउन ट्राउट
इसे आमतौर पर ब्राउन ट्राउट कहा जाता है. यह मध्य और पश्चिमी यूरोप के पहाड़ों के पानी की मूल निवासी है. यह मछली भारत में कृत्रिम रूप से प्रजनन और पाली जाने वाली पहली मछली थी. अगर इसे सभी पहाड़ियों के पहाड़ी पानी से परिचित कराया गया था, लेकिन यह केवल कश्मीर की धाराओं और खेतों और पंजाब में ब्यास नदी में ही स्थापित हो सकी है. यह क्रस्टेशियंस और तल पर बड़े जीवित शिकार से फीड हासिल करती हैं. यह प्राकृतिक खाद्य उपलब्धता के आधार पर अधिकतम लंबाई लगभग 46.5 सेमी हासिल कर लेती हैं. प्रजनन के मौसम के दौरान, मछली तेजी से वर्तमान पानी के बजरी बिस्तर वाले उथले पर अंडे देने के लिए धाराओं में तैरती हैं.

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