नई दिल्ली. पशुपालन में बीमारी एक ऐसा रोड़ा है जो इसके फायदे को नुकसान में बदल सकती है. एक्सपर्ट कहते हैं कि ऐसे में हर पशुपालक को हमेशा अपने पशुओं में रोगों के लक्षणों की निगरानी करते रहना चाहिए. इससे उसको जानकारी होती है कि पशु हेल्दी है या बीमार. पशु पालक को रोज अपने जानवरों का निरीक्षण कर यह जान लेना चाहिए कि उसका कौन सा जानवर बीमार है. तुरंत जानकारी से पशु का समय पर उपचार किया जा सकता है और बीमारी से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है.
इस इकाई में बीमारी के सामान्य लक्षण व प्रानिक चिकित्सा के इस्तेमाल में आने वाली सामाग्री के बारे में जानकारी दी जायेगी. साथ ही पशुओं श्यक प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराने की जानकारी दी जायेगी. इससे पशु पालकों को बीमार जानवर की पहचान, उसमें उपयोग होने वाला प्राथमिक चिकित्सा सामग्री और प्राथमिक उपचार करने में मदद मिलेगी.
बीमारी के सामान्य लक्षण के बारे में पढ़ें
- बीमारी की हालत में पशु की स्थिति, उसकी चाल और व्यवहार में बदलाव आ जाता है. जानवर का सिर लटकाकर खड़ा होना या जानवरों के झुन्ड से अलग होना बीमारी के संकेत है.
- भूख न लगना और जुगाली का बन्द होना भी कई बीमारियों के शुरुआती लक्षण हैं. रोग के कारणों को सुनिश्चित किया. जाना आवश्यक होता है.
- जानवरों की त्वचा सामान्यतया मुलायम खिंचावदार और लचीली होती है. सूखी व रूखी त्वचा बीमारी का संकेत करती है.
- बालों का खड़ा होना, गिरना या सख्त होना, और चमक खोना भी अच्छे स्वास्थ के अच्छे सकते नहीं है.
- जूं और किलनी के कारण बदन में चकत्ते हो जाते हैं. जानवरों के पेट में कृमि होने और वजन में कमी करने वाली बीमारियों में भी स्किन अपनी चमक खो देती है.
- थूथन और नथूना आमतौर पर स्वस्थ जानवर में नम होते हैं. बुखार होने पर थूथन सूख जाता है.
- हेल्दी पशु की आंखे चमकदार और सजग होती हैं. आंखों का धंस जाना व जानवर का एकटक देखना, आंख का अधिक लाल हो जाना अधिकतर बुखार होने के लक्षण हैं.
- पशु के शरीर का तापमान सामान्य होना चाहिए. शरीर का तापमान रेक्टम के अंदर एक मिनट तक थर्मामीटर डालने से पता लगाया जा सकता है.
- बीमार पशु का तापमान बीमारियों से लड़ने के कारण बढ़ जाता है. युवा जानवर, अन्तिम गर्भावस्था के दौरान गर्मित मादाओं, उत्तेजित होने वाले जानवरों का तापमान अधिक होता है. है।
- नाड़ी की गति सामान्य होनी चाहिए. नाड़ी की गति में बदलाव दिल का शरीर को खून पम्प करने की गति के अनुसार होता है.
- गाय और भैंसों में यह पूछ के नीचे धमनी के ऊपर अगुंली रखने से जांची जा सकती है. नाड़ी की गति आमतौर पर गाभिल और युवा पशुओं में अधिक होती है.
- सांस लेने की गति सामान्य होनी चाहिये. बुखार होने की अवस्था में साँस लेने की गति व गहराई में बदलाव आ जाता है.
- सांस की गति की जांच पशु के शरीर की बगल के उत्तार चढ़ाव या नथूनों पर हाथ रख कर की जा सकती है.
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