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Sheep Farming: इन भेड़ों को रेवड़ से तुरंत निकाल दें बाहर, प्रोडक्शन पर डालते हैं बुरा असर

muzaffarnagari sheep weight
मुजफ्फरनगरी भेड़ की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. अगर किसान भेड़ पालन करते हैं तो इससे तीन तरह से फायदा उठाया जाता है. भेड़ का मीट, ऊन और दूध बेचकर पैसा बनाया जा सकता है. भेड़ पालन में अगर मुजफ्फरनगरी नस्ल की भेड़ का पालन कर रहें तो यहां आपको कुछ ऐसी जरूरी बातें जानने को मिलेंगी, जिससे भेड़ पालन और ज्यादा फायदेमंद हो जाएगा. एक्सपर्ट का मनना है कि भेड़ों की मुजफ्फरनगरी नस्ल के रेवड़ों से अधिक उत्पादन व आर्थिक फायदे के लिए भेड़ पालकों द्वारा उत्तम प्रजनन तकनीकियों का प्रयोग बहुत ही जरूरी है.

वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित व किसानों द्वारा प्रयोग में लाई जा सकने वाली तमाम तकनीकियां यहां बताई जा रही हैं. जिन्हें अपनाकर भेड़ पालक मुजफ्फरनगरी भेड़ की नस्ल में सुधार कर उचित फायदा उठा सकेंगे. ऐसे में अगर आप भेड़ पालक हैं तो फिर ये खबर आपके काम की है और आप इससे फायदा उठा सकते हैं.

मटन के लिए बेहतरीन है ये नस्ल
एक्सपर्ट डा. गोपाल दास, डा. नितिका शर्मा एवं योगेन्द्र कुमार कुशवाहा ने बताया कि मुजफ्फरनगरी भेड़ मुजफ्फरपुर जिले की उत्तम मटन पैदा करने वाली प्रमुख नस्ल है. शुद्ध मुजफ्फरनगरी नस्ल की भेड़ की पहचान कर प्रजनन कराना आर्थिक लाभ हेतु आवश्यक है. मुजफ्फरनगरी नस्ल की भेड़ों के मुख्य पहचान चिन्ह सफेद ऊन, लम्बे व लटके कान, लम्बी पूँछ, सींग विहिन सिर व सुडोल शरीर आदि हैं. एक वर्ष की आयु के बाद नर व मादा भेड़ों को वयस्क श्रेणी में रखा जाता है. आमतौर पर नर व मादा को 18 व 12 माह की आयु पर प्रजनन में प्रयोग करते हैं. मुजफ्फरनगरी नर व मादा वयस्क भेड़ों के औसत शारीरिक भार क्रमश: 45-55 व 35-45 किलोग्राम होते हैं.

उचित समय पर छंटनी करना जरूरी
भेड़ पालन को अधिक लाभकारी बनाने के लिये कम उत्पादक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से अनुपयोगी जानवरों को रेबड़ से निम्न कारणों द्वारा छंटनी कर निष्कासित किया जाता है ताकि प्रति जानवर उत्पादकता में कमी न आए. सबसे पहले ऐसे मेमने जो नस्ल के अनुरूप नहीं हैं, जिनकी शारीरिक वृद्धि सामान्य नहीं होती अथवा पैर टेड़े मेड़े होते हैं उन्हें रेबड़ से बाहर कर देना चाहिए. जिन वयस्क भेड़ें तथा नर भेड़ों की प्रजनन क्षमता कम होती है. उन्हें रेवड़ में रखना आर्थिक दृष्टि से नुकसानदायक है. रेवड़ में कुछ जानवर ऐसे भी पाये जाते हैं जिन पर उपचार का प्रभाव बहुत ही कम पड़ता है. ऐसे जानवरों की छंटनी कर देना जरूरी है.

7 वर्ष के बाद कम हो जाती है उत्पादन क्षमता
आमतौर पर भेड़ों की औसत आयु 10 वर्ष है लेकिन इनमें 7 वर्ष पर इनके उत्पादन एवं जनन गुणों में गिरावट आ जाती है. तथा इनके अधिक बीमार होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है. इसके साथ ही वृद्ध भेड़ों से प्राप्त मेमने भी कम शारीरिक भार व कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले पैदा होते हैं. जिनमें मृत्यु दर बढ़ जाती है. इसलिए नियमित रूप से समय-समय पर उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर जानवरों की छंटनी कर निष्कासित करना चाहिये.

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