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Sheep Farming: भेड़ों को इस समय सबसे ज्यादा होता है पीपीआर बीमारी का खतरा, यहां पढ़ें क्या हैं लक्षण

भेड़ पालन से केवल ऊन और मांस ही हासिल नहीं किया जाता है, बल्कि ये आमदनी का जरिया भी है.
मुजफ्फरनगरी भेड़

नई दिल्ली. भेड़ों में पाए जाने वाले संकामक रोगों में पीपीआर रोग आजकल बहुत से भेड़ पालकों की नुकसान पहुंचा रहा है. पीपीआर भेड़ और बकरियों में फेलने वाला वायरस से होने वाला खतरनाक संक्रामक रोग है. जो स्वस्थ भेड़-बकरियों/पशुओं में तेजी से संचारित होकर एक ही समय ज्यादा से ज्यादा मवेशियों को अपनी चपेट में ले लेता है. यह रोग वायरस (मिक्सोवाइरस) समूह के द्वारा पैदा होता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि ये बीमारी रोगी भेड़ बकरी दूषित आहार, पानी, मल-मूत्र आदि के सम्पर्क में आने से स्वस्थ पशुओं में यह रोग तेजी से फैलता है.

वैसे इसका कोई फिक्स टाइम नहीं है. पूरे वर्ष भेड़-बकरी को प्रभावित कर सकता है. हालांकि मई महीने में देश के 82 राज्यों में इसके फैलने को लेकर अलर्ट जारी किया गया है. इसका प्रभाव जाड़ों में जब तापमान कम होता है. तब अधिक होता है, क्योंकि तापमान कम होने के कारण भेड़-बकरी की चयापचया से उत्पन्न होने वाली शक्ति का प्रयोग शरीर के तापमान को नियत्रित करने में लग जाती है, जिससे भेड़-बकरी की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति कम हो जाती है.

क्या है पीपीआर के सामान्य लक्षण
शुरू में पशु में सुस्त कमजोर, आहार के प्रति अरूचि, आंखे लाल, आंख/मुंह/नाक से पानी बहना आदि लक्षण दिखते हैं. बुखार कुछ कम होते ही मुंह के अन्दर मसूढ़ों व जीभ पर लाल-लाल दाने फूटकर घाव बनकर दिखाई देते हैं. जिनमें जल्दी ही सड़न पैदा हो जाती है. आंखों से कीचड़ आने लगता है और तेज बदबूद्दार खून व आंव से मिश्रित दस्त आने लगते हैं. गर्भित पशुओं के गर्भ गिर जाते हैं. धीरे-धीरे दस्त की मात्रा व घावों में सड़न बढ़ती है और पशु अत्याधिक सुस्त होकर मर जाता है. ऐसे में पशुपाल को बड़ा नुकसान होता है. वहीं कई बार अवेयरनेस की कमी के कारण अन्य पशुओं में भी ये बीमारी फैल जाती है तो दिक्कत और ज्यादा बढ़ जाती है.

4 से 8 दिन में मवेशी की हो जाती है मौत
एक मवेशी से दूसरे मेवशी के अंदर बीमारी लग जाने से पशुओं की मौत होने चांस और ज्यादा बढ़ जाता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि रोग के संक्रमण के चार से आठ दिन के भीतर रोगी भेड़-बकरी की मृत्यु हो जाती है. इससे प्रभावित भेड़ एवं बकरियों की मृत्यु दर 90 प्रतिशत तक हो सकती है. जो भेड़-बकरी बच जाते है उन्हे स्वस्थ होने में काफी समय लग जाता है. प्राथमिक लक्षणों, शव परीक्षण तथा प्रयोगशालात्मक जांच द्वारा रोग का सही निदान निकटतम पशु चिकित्साधिकारी से सम्पर्क कर समय रहते किया जा सकता है.

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