नई दिल्ली. सांप का काटना घातक हो सकता है. कुछ सांप ज्यादा जहरीले होते हैं तो कुछ कम जहरीले होते हैं. कम जहरीले सांप के काटने से भी स्थिति गंभीर हो सकती है. बता दें कि बारिश के सीजन में सांप के काटने की घटनाएं ज्यादा संख्या में सामने आती हैं. यदि सही समय पर इलाज नहीं मिले तो सांप काटने से व्यक्ति की मौत भी हो सकती है. सांप का जहर खून में घुलकर शरीर के अन्य हिस्सों तक पहुंचता है जिससे खून बहना, मांसपेशियों में कमजोरी और पक्षाघात जैसी समस्याएं हो सकती हैं. जहर से फेफड़े, हार्ट, किडनी और दिमाग जैसे महत्वपूर्ण अंग भी प्रभावित हो सकते हैं.
यदि आप विभिन्न प्रकार के सांपों से अपरिचित हैं और विषैले और गैर विषैले सांपों के बीच अंतर करने में असमर्थ हैं, तो यह जानना मुश्किल हो सकता है कि काटने की स्थिति में कैसे प्रतिक्रिया करनी है. सांप के काटने को हमेशा विषैले सांप की तरह ही लें. यहां जानिए कौन सी प्रजातियां विषैली हैं जो अपने यहां पाई जाती हैं.
66 प्रजातियां विषैली और 42 हल्के विषैले: भारत में 310 से अधिक सांपों की प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 66 प्रजातियां विषैली हैं और 42 हल्के विषैले हैं. सभी प्रजातियों में से भारत में 90 प्रतिशत सांप के काटने के मामले केवल चार प्रजातियों द्वारा होते हैं. इन्हें बिग 4 के नाम से जाना जाता है. इनमें रसेल वाइपर (Daboia russelii), स्पेक्टेकल्ड कोबरा (Naja naja), कॉमन करैत (Bungarus Caeruleus) और सॉ-स्केल्ड वाइपर (Echis Carinatus). इन प्रजातियों का वितरण देशभर में समान नहीं है और यह निवास स्थान, वर्षा, ऊंचाई और शिकार की उपलब्धता जैसे विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है.
विषैले और गैर-विषैले सांप के काटने में ये होता है अंतर: गैर-विषैले सांप काटने पर आमतौर पर पंक्ति में छोटे पंचर निशान छोड़ते हैं. जबकि विषैले सांप के काटने में दो अलग-अलग दांतों के निशान होते हैं. विषैले सांपों के ऊपरी जबड़े में दो घुमावदार दांत होते हैं, जो काटते समय सीधे हो जाते हैं और विष छोड़ते हैं। काटने के समय, ये दांत ऊतक या मांसपेशियों में विष इंजेक्ट करते हैं. दांतों के निशान के बीच की दूरी आमतौर पर 1 से 4 सेंटीमीटर होती है.
सांप काट ले तो घबराएं नहीं: सांप काट ले तो घबराएं नहीं, सांप को खोजने की बजाए तुरंत पीड़ित को नजदीकी अस्पताल ले जाएं. देरी करने पर पीड़ित व्यक्ति का तंत्रिका तंत्र प्रभावित हो सकता है. उसका सांस लेना मुश्किल हो सकता है. ब्लड का थक्का जमना या फंगल संक्रमण फैलना शुरू हो जाता है. इसलिए उसे नजदीकी हॉस्पिटल ले जाएं. ताकि उसे वहां एंटी-स्नेक वेनम नामक टीका दिया जा सके.
Leave a comment