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Vaccination: तो क्या जूनोटिक बीमारी आने पर 100 दिन में तैयार हो जाएगी वैक्सीन, जानें यहां

गर्मी में खासतौर पर भैंस जिसकी चमड़ी काली होती है और सूरज की रोशनी का असर उसपर ज्यादा होता है.
प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अंतर्गत पशुपालन और डेयरी विभाग ने इंडियन इम्यूनोलॉजिकल्स लिमिटेड और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) के सहयोग से 10 जनवरी 2025 को हैदराबाद में “महामारी तैयारी और वैक्सीन इनोवेशन पर सम्मेलन” का आयोजन किया. जहां एक बड़े ही अहम मसले पर चर्चा. कहा गया है कि जब भी कोई जूनोटिक बीमारी आए तो पशु और इंसानों के लिए 100 दिनों में वैक्सीन तैयार कर ली जाए. अगर ऐसा करने में कामयाबी मिल जाती है तो पशुओं और इंसानों की जान आसानी से बचाई जा सकती है.

बता दें कि हैदराबाद में पशुधन वैक्सीन नवाचार पर वैज्ञानिक सम्मेलन आयोजित इस कार्यक्रम में डॉ. वी. के. पॉल ने 100-दिवसीय महामारी तैयारी समयसीमा की वकालत की है. उन्होंने विश्व की महामारियों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए पशु चिकित्सा बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया. इसमें उभरती बीमारियों का शीघ्र पता लगाने और तेजी से प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिए नैदानिक सुविधाओं को बढ़ाना शामिल है. उन्होंने अगली पीढ़ी के पशु टीकों के विकास और उत्पादन के लिए उन्नत प्लेटफॉर्म स्थापित करने के महत्व को भी रेखांकित किया, जो जूनोटिक रोगों के फैलाव को रोकने और पशु और मानव स्वास्थ्य दोनों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं.

इस प्लानिंग से मिलेगा फायदा
डॉ. पॉल ने कहा कि इन महत्वपूर्ण घटकों को मजबूत करना वन हैल्थ के तहत एक लचीला स्वास्थ्य सेवा ढांचा बनाने के व्यापक लक्ष्य है. जोर देकर कहा कि 100 दिनों की समयसीमा के साथ महामारी के लिए तैयारी करना भविष्य की महामारियों का सामना करने और तैयार रहने का सही तरीका होगा. पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय ने कहा कि सरकार को बेहतर उत्पादकता के लिए पशु स्वास्थ्य पर अधिक खर्च करने की आवश्यकता है और अंतिम मील वितरण को प्रभावी बनाने के लिए आपूर्ति श्रृंखला और कोल्ड चेन सिस्टम में भी सुधार करना चाहिए.

एआई को बढ़ावा देने पर दिया गया जोर
पशुपालन आयुक्त डॉ. अभिजीत मित्रा ने अपने संबोधन में पशु टीकों के लिए वैक्सीन सुरक्षा और पूर्व-योग्यता सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया. सम्मेलन का उद्देश्य “वन हेल्थ” के विभिन्न पहलुओं की गहरी समझ को बढ़ावा देना था, जिसमें टीकाकरण कार्यक्रमों को बढ़ाना, पशुधन स्वास्थ्य में सुधार, महामारी की तैयारी के लिए लचीली आपूर्ति श्रृंखलाओं का निर्माण, महामारी प्रतिक्रियाओं को मजबूत करना, रोग निगरानी को आगे बढ़ाना और वैक्सीन परीक्षण को सही करना, स्वास्थ्य सेवा में एआई को बढ़ावा देना, सेल और जीन थेरेपी वैक्सीन और अनुमोदन के लिए नियामक मार्ग शामिल हैं.

सबस ज्यादा भारत में बनती है वैक्सीन
भारत को वैश्विक वैक्सीन हब के रूप में जाना जाता है, जहां 60 फीसदी से अधिक वैक्सीन भारत में बनाई जाती हैं. जबकि 50 परसेंट से अधिक वैक्सीन निर्माता हैदराबाद से काम करते हैं. पशुपालन एवं डेयरी विभाग, केंद्र सरकार से 100 फीसदी वित्तीय सहायता के साथ पशुधन में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण कार्यक्रम लागू कर रहा है, जिसमें खुरपका और मुंहपका रोग (102 करोड़ टीकाकरण किए गए) (WOAH द्वारा अनुमोदित), ब्रुसेलोसिस (4.23 करोड़ टीकाकरण किए गए), पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स (PPR) (17.3 करोड़ टीकाकरण किए गए), क्लासिकल स्वाइन फीवर (0.59 करोड़ टीकाकरण किए गए) और लम्पी स्किन डिजीज (26.38 करोड़ टीकाकरण किए गए) के लिए साझा पैटर्न शामिल हैं. जिसके तहत प्रत्येक पशु को भारत पशुधन यानी राष्ट्रीय डिजिटल पशुधन मिशन में दर्ज एक विशिष्ट पहचान संख्या (UID) प्राप्त होती है, जो टीकाकरण कार्यक्रम पर नज़र रखती है और पता लगाने की क्षमता सुनिश्चित करती है. इस तरह के टीकाकरण कार्यक्रमों से देश में प्रमुख पशुधन रोगों की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी आई है.

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