नई दिल्ली. ग्रामीण परिवेश में रहने वाले सभी लोग ये बात तो अब सभी समझ चुके हैं कि डेयरी उद्योग ग्रामीण परिवेश में नियमित आय एवं रोजगार का मुख्य साधन बनता जा रहा है. जबकि पशुपालन में चारा एव पशु आहार की लागत कुल दुग्ध उत्पादन लागत की 60-70 प्रतिशत होती है. इसलिए पशु पोषण की जरूरत को पूरा करने और दूध उत्पादन की लागत को कम करने में हरे चारे का अहम रोल होता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि अदलहनी चारा फसलें जैसे मक्का, ज्वार, मकचरी, जई आदि ऊर्जा एवं दलहनी चारा फसलें प्रोटीन एव खनिजों की मुख्य स्रोत होती हैं.
आईवीआरआई के राकेश पांडे और पुतान सिंह का कहना है कि हरे चारे से पशुओं में कैरोटीन की पूर्ति होती है. दूध में विटामिन ‘ए’ हरे चारे के माध्यम से ही उपलब्ध होता है. जबकि दूसरी ओर चारे की कमी हो रही है. दरअसल, घटती कृषि भूमि एवं चारा फसलों के अन्तर्गत घटते क्षेत्रफल के कारण ऐसा हो रहा है. यही वजह है कि साल 2005 में भी चारा फसलों की कमी देखी जा रही है. साल दर साल कर आंकलन किया जाए तो पशुओ को दिए जाने वारे चारे में कमी देखी गई है. बात चाहे रहे चारे की हो या फिर सूखे चारे की दोनों की ही डिमांड के मुताबिक आपूर्ति नहीं हो सकी है.
हरा और सूखा चारा की थी कमी
पशुपालन एवं डेयरी पर पंचवर्षीय योजना के तहत गठित कार्य समूह की ड्राफ्ट रिपोर्ट और आईवीआरआई की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2005 में पशुओं के लिए 389 टन हरा चारा उपलब्ध हो सका था. जबकि जरूरत 1025 टन की थी. वही सूखे चारे की बात की जाए तो 589 टन की जरूरत थी लेकिन 443 टन ही उपलब्ध हो सका था. यानी हरे चारे में 61 फ़ीसदी की कमी देखी गई और सूखे चारे में 22 फीसदी की कमी रिकॉर्ड की गई थी. वहीं साल 2010 की बात की जाए तो हरे चारे की डिमांड 1097 मिलियन टन थी लेकिन उपलब्ध सिर्फ 395 मिलियन तन हो सका था. वही सूखे चारे की डिमांड 589 मिलियन टन थी और 451 मिलियन टन ही उपलब्ध हो सका.
साल 2025 में भी कमी रहेगी
इसी तरीके से साल 2015 में हरे चारे की 400 मिलियन टन उपलब्धता हो सकी जबकि डिमांड 1097 मिलियन टन थी. सेख चारे की मांग 609 मिलियन टन थी लेकिन उपलब्ध सिर्फ 466 मिलियन टन हो सका. 2020 में 405 मिलियन टन चारा उपलब्ध हो सका. जबकि डिमांड 1134 थी. वहीं हरे चारे की डिमांड 630 थी. उपलब्धता सिर्फ 473 मिलियन टन की हो सकी. इतना ही नहीं साल 2025 में भी चारे की कमी देखी जा सकती है. इस साल जो डिमांड है वह 1170 मिलियन टन हरे चारे की है. एक्सपर्ट का कहना है कि सिर्फ 411.3 मिलियन टन चारा उपलब्ध हो सकेगा. वहीं सूखे चारे की मांग 650 मिलियन टन है. जिसके सामने 488 मिलियन टन सूखा चारा ही पशुओं को उपलब्ध हो सकता है. ऐसे में पशुओं के सामने और पशुपालकों के सामने चारे बड़ा संकट दिखेगा. जिससे डेयरी उद्योग को बड़ा नुकसान हो सकता है.
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