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Fish Farming: इन तीन तरीकों से मछली की ग्रोथ के साथ होता है खूब प्रोडक्शन, यहां पढ़ें डिटेल

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी कोशिशें रही है. इसको लेकर निवेश भी किया जा रहा है. दरअसल, इसका मकसद भारत में फिशरीज इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकसित करना और मछलियों के उत्पादन को बढ़ावा देना है. फिशरीज भारत में आजीविका का प्रमुख सोर्स है. इस क्षेत्र में विकास पोषण सुरक्षा, भारत की खाद्य सुरक्षा और देश में अतिरिक्त रोजगार मुहैया कर रहा है. मत्स्य पालन की तकनीक अपना कर घर परिवार और राष्ट्र के स्वस्थ होने में हम योगदान दे सकते हैं. वहीं इसको करने से खूब कमाई भी होती है.

मछली पालन को ज्यादा फायदेमंद बनाने के लिए कई चीजों को किया जा सकता है.​ मिक्सड मछली पालन, एकीकृत मछली पालन, कृषि सह जलकृषि मछली पालन के बारे में आपको यहां हम बताने जा रहे हैं. इन चीजों से मछली पालन करने से आपको ज्यादा फायदा होगा.

मिश्रित मछली पालन
यह सबसे प्रचलित तकनीक है. जिसमें भारत की तीन और चीनी मूल की तीन मत्स्य प्रजातियों को तालाब में उनकी आदत और रहने की प्रवृत्ति (Niche) के अनुसार पाला जाता है. जिससे अकेले पालन की तुलना में उत्पादन में ज्यादा ग्रोथ (Synergic growth) देखी जाती है. इस मेथड से एक हेक्टेयर से प्रतिवर्ष 10-15 हजार किलोग्राम तक मछली पैदा की जा रही है. उत्तर प्रदेश में औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादन 4500 किलोग्राम है. यह मत्स्य पालकों की सबसे पसंदीदा तकनीक है. जिसे कई दशकों में देश भर में मत्स्य पालक विकास अभिकरणों ने बढ़ावा दिया और अब भी मत्स्य पालकों द्वारा व्यापक तौर पर अपनायी जा रही है. इस तकनीक में कतला तालाब की ऊपरी सतह, रोहू मुख्यतः मध्य में और मृगल तल पर पलती है और चीनी मूल की मछलियों में सिल्वर कार्य ऊपर और कामन कार्प तल पर रहती है. ग्रास कार्य को बाहर से चरी या घास खाने को दिया जाता है. इसी तरह कुछ अन्य प्रमुख तकनीकें भी व्यवहार में हैं.

कृषि सह जलकृषि
इस तरह के पालन के लिये विभिन्न तरह की फसल उपयुक्त होती है. फल (पपीता, केला, अमरूद, नींबू, सीताफल, अनानास, नारियल), सब्जियाँ (चुकन्दर, करेला, लौकी, बैंगन, बन्दगोभी, फूलगोभी, खीरा, ककड़ी, खरबूजा, मटर, आलू, मूली, टमाटर), दलहन (हरा चना, काला चना, अरहर, राजमा, मटर) तिलहन (मूँगफली, सरसों, तिल, रेडी) फूल (गेंदा, गुलाब, रजनीगंधा), औषधीय पौधे (घृतकुमारी, तुलसी, कालमेध नीम) आदि. तालाब के चारो तरफ 3 फीट चौड़ा ऊंचा बांध बनाकर उस पर बागवानी (पपीता, केला, अमरूद, नारियल इत्यादि) कर सकते हैं. ग्रास कार्प के भोजन के लिये चरी नेपियर घास की खेती भी तालाब के किनारे की जा सकती है. तालाब से हासिल गाद और जलीय वेस्ट को खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है. इस तरह से तालाब के किनारे के खेत को बिना अतिरिक्त पानी खर्च किये उपजाऊ भी बना सकते हैं.

2-एकीकृत मत्स्य पालन
विभिन्न फसलों, मवेशी और मछलियों का एक साथ पालन यहां मुख्य उद्देश्य है. इसमें वेस्ट पदार्थों को फेंका नहीं जाता बल्कि उन्हें रिसाइकलिंग कर उपयोग किया जाता है. इसलिए यह जीविकोपार्जन एवं आय की दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण तकनीक है. एकीकृत पालन कई प्रकार से किया जाता है.

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