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Dairy Animal Fodder: पशुओं के लिए हरा और सूखा दोनों चारा मिलता है इस फसल से, डिटेल पढ़ें यहां

सीता नगर के पास 515 एकड़ जमीन में यह बड़ी गौशाला बनाई जा रही है. यहां बीस हजार गायों को रखने की व्यवस्था होगी. निराश्रित गोवंश की समस्या सभी जिलों में है इसको दूर करने के प्रयास किया जा रहे हैं.
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. पशुपालन में जई का इस्तेमाल बहुत पहले से ही हरे और सूखे चारे के रूप में किया जाता रहा है. इससे अच्छी क्वालिटी वाला साइलेज भी तैयार होता है. इसकी फसल से तीन कटाईयां तक हासिल हो जाती हैं. रबी में बरसीम के बाद जई का ही उत्तम स्थान है. जई की हरी पत्तियां प्रोटीन एवं विटामिन से भरी होती हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि कैन्ट, ओ.एस.-6 और ओ. एस.-7, ये वो प्रजातियां हैं, जो पूरे भारत के लिए उपयुक्त हैं. जिससे 40-57 टन हरा चारा प्रति हेक्टेयर हासिल किया जा सकता है. इन प्रजातियों से एक से दो कटाईयां ली जाती हैं.

वहीं यूपीओ-94 और यूपीओ -212 भी पूरे देश के लिए उपयुक्त हैं और यह बहुकटाई वाली किस्में हैं. जिनसे 45-57 टन प्रति हेक्ट. तक उत्पादन प्राप्त होता है. इनके अलावा ओएल 9 उत्तर, उत्तर पश्चिमी एवं दक्षिणी पठार के लिए और बुन्देल जई (जे. एच.ओ. 822 और 851) मध्य भारत के लिए उपयुक्त है जिनसे 40-50 टन हरा चारा प्रति हेक्टेयर हासिल होता है.

कैसे करें जमीन की तैयारी
खरीफ की कटाई के बाद पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से व 3-4 जुताईयां हैरो, कल्टीवेटर या देशी हल से करते हैं. वहीं हर बार पाटा लगाया जाता है. बीज दर की बात की जाए तो 80-100 किलोग्राम बीज दर प्रति हेक्ट. थीरम व केप्टान कवकनाशी से उपचारित कर बोना चाहिए. कम उपजाऊ वाली मिट्टी में में बीज की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए. पंक्तियों के बीच का फर्म 20-25 सेमी रखना चाहिए. बीज को 5-6 सेमी गहराई पर नमी के सम्पर्क में बोते हैं. जई की बुवाई अक्टूबर से फरवरी तक की जाती है. वैसे बुवाई जल्दी पर कटाईयां अधिक मिलने से उपज अच्छी मिलती है.

खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल
खाद की मात्रा को मृदा परीक्षण के आधार पर प्रयोग किया जाता है. आमतौर चारे वाली फसल के लिए 100-120 किलोग्राम नत्रजन, 60 क्रिलोग्राम फास्फोरस व 30 क्रिलोग्राम पोटाश हर एक हेक्टेयर में डालें. नत्रजन की आधी मात्रा व फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा को बुवाई के समय ही दिया जाता है. नत्रजन का बाकी हिस्सा दो किश्तों में फसल की बुवाई के 25 दिन बाद (पहली सिंचाई के समय) व बाकी पहली कटाई के बाद डालते हैं.

सिंचाई और कटाई
सिंचाईयों की संख्या बुवाई के समय, मृदा के प्रकार एवं जलवायु पर निर्भर करती है. वैसे पहली सिंचाई बुवाई के 25 दिन बाद की जाती है. बाद वाली सिंचाईयां 15-20 दिन के गैप पर करना चाहिए. जई की फसल की कटाई कई बार की जाती है फसल में बाली आने से पहले ही फसल को काट लिया जाता है. कटाईयों की संख्या मुख्य रूप से फसल की प्रजाति, बुवाई का समय, मिट्टी की उर्वरता तथा सिंचाई सुविधा पर निर्भर करती है. आमतौर पर कटाई 50 प्रतिशत की अवस्था पर करने से उपज अधिक मिलती है. यह अवस्था बुवाई के 55-60 दिन पर आ जाती है इस समय पौधे 60-65 सेमी लम्बे होते हैं.

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