नई दिल्ली. पशु पालन वैसे तो बहुत ही फायदे का कारोबार है. इसे करके अच्छी कमाई की जा सकती है. किसानों की आय भी दोगुनी हो रही है. हालांकि रोग दूध उत्पादन में बाधा और गंभीर आर्थिक नुकसान के लिए जिम्मेदार होता है. एक बार जब पशु बीमार हो जाता है तो खाना-पीना बंद कर देता है. सुस्त लगता है, खुद को अन्य जानवरों से अलग और अंत में दूध देना बंद कर देता है. डेयरी पशु कई बीमारियों से प्रभावित हो जाते हैं. मुख्य बीमारियां उत्पादन रोग (मेटाबोलिक रोग), संक्रामक रोग, प्रोटोजोआ रोग, परजीवी रोग, वायरल रोग और विविध रोग इस प्रकार है.
आज हम यहां बैक्टेरियल डिसीज यानि संक्रामक रोग का जिक्र करने जा रहे हैं. इस आर्टिकल को पढ़कर आपको मालूम चलेगा कि संक्रामक रोग किन वजहों से होता है. इस बीमारी की क्या वजह है. इस बीमारी से मवेशियों पर क्या असर पड़ता है. आइए इसके बारे में डिटेल से जानते हैं.
बैक्टेरियल डिसीज गलाघोंटू
भैंसे इस रोग से अधिक ग्रस्त होती है. परिवहन से होने वाला तनाव इस रोग को मुख्य रूप से बढ़ाता है. इस रोग में शरीर का तापमान बहुत ज्यादा हो जाता है, गर्दन में सूजन, भूख न लगना, सांस लेते समय गर-गर की आवाज आना, सांस गति में तेजी और लार का निरंतर गिरना, जीभ कुछ समय के लिए बाहर निकलना इस रोग के मुख्य लक्षण हैं. इस बीमारी में आमतौर पर पशु की 24 घंटे के भीतर मौत हो जाती है. दस्त, निमोनिया, खांसी और सांस लेने में कठिनाई जैसे मुख्य लक्षण दिखाई देते हैं. इस बीमारी के होने के बाद पशु का ठीक होना बहुत दुर्लभ है. कोई उचित उपचार उपलब्ध नहीं है. केवल रोकथाम ही प्रभावी तरीका है.
कैसे किया जाए नियंत्रण जानें यहां
उपाय की बात की जाए तो इस रोग से बचाव के लिये हमें पशु का टीकाकरण करवाना चाहिए. जो किसी भी सरकारी अस्पताल में उपलब्ध होता है. पशु को रहने के लिए अच्छी तरह हवादार घर और अधिक स्थान प्रदान करना चाहिए. अगर ट्रक में पशु एक जगह से दूसरी जगह जाता है तो प्रर्याप्त स्थान और ठंडी हवाओं से सुरक्षा के साथ सावधानी से परिवहन करना चाहिए.
ब्रूसिलोसिस बीमारी
आमतौर पर पशु की गर्भावस्था के 5-7 महीने में गर्भपात हो जाता है. पशु का दूध उत्पादन कम हो जाता है. बांझपन जैसी समस्या हो जाती है. गर्भपात के बाद जेर रुक जाने से व पेशाब के द्वारा भी अन्य पशुओं में संक्रमण होने का खतरा बना रहता है. नियंत्रण और उपाय की बात की जाए तो इस रोग के होने के बाद कोई उचित उपचार नहीं है. केवल बचाव ही उपाय है. जानवर आवास में स्वच्छता, चूना पाउडर या फिनाएल 5 फीसदी का पशु आवास में छिड़काव ही समाधान करने का प्रभावी तरीका है. इस रोग से बचाव के लिए मादा बछड़ियों/कटड़ियों को, जिनकी उम्र 6-8 महीने की है. टीकाकरण करवा के बचाव करना चाहिए. एक बार किया हुआ टीकारण ही जीवन पर्यन्त काम करता है. दोबारा टीकाकरण करवाने की आवश्यकता नही होती है.
Leave a comment