नई दिल्ली. आगरा का पेठा तो मथुरा के पेड़े को जीआई टैग मिल चुका है. अब उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर वाराणसी के दो और प्रतिष्ठित उत्पादों को भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा दिया गया है. 16 अप्रैल, 2024 को चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्री कार्यालय ने घोषणा की कि वाराणसी की तिरंगा बर्फी और धलुआ मूर्ति मेटल कास्टिंग क्राफ्ट को प्रतिष्ठित जीआई श्रेणी में शामिल किया गया है. बता दें कि वाराणसी की लौंग लता-लाल पेड़े को भी जीआई टैग मिल चुका है. महत्वपूर्ण विकास में, उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर वाराणसी के दो प्रतिष्ठित उत्पादों को प्रतिष्ठित भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा दिया गया है।
उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर वाराणसी के दो प्रतिष्ठित उत्पादों को प्रतिष्ठित भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा दिया गया है. 16 अप्रैल, 2024 को चेन्नई स्थित जीआई रजिस्ट्री कार्यालय ने घोषणा की कि वाराणसी की तिरंगा बर्फी और धलुआ मूर्ति मेटल कास्टिंग क्राफ्ट को प्रतिष्ठित जीआई श्रेणी में शामिल किया गया है. कुछ दिनों पहले वाराणसी के लौंग लता और पेड़ा का भी जीआई टैग मिला था. इन दोनों मिठाई का प्रोडेक्शन अमूल करेगा. वाराणसी की ये दोनों ही मशहूर मिठाई हैं, जिन्हें 23 फरवरी को पीएम नरेंद्र मोदी जीआई टैग देने का एलान किया था. पीएम मोदी ने 23 फरवरी को अमूल बनारस डेयरी का उद्घाटन किया था.
उत्तर प्रदेश का जीआई उत्पाद टैली 75 तक पहुंच गया
इस एक और नई वृद्धि ने जीआई क्षेत्र में अग्रणी के रूप में उत्तर प्रदेश की स्थिति को और मजबूत कर दिया है. तिरंगा बर्फी और धलुआ मूर्ति मेटल कास्टिंग क्राफ्ट को शामिल करने के साथ, राज्य से जीआई उत्पादों की कुल संख्या प्रभावशाली 75 तक पहुंच गई है, जिसमें 58 हस्तशिल्प और 17 कृषि और खाद्य उत्पाद शामिल हैं. इस उल्लेखनीय उपलब्धि ने भारत में किसी विशेष राज्य से जुड़े सबसे अधिक जीआई टैग का नया रिकॉर्ड बनाया है.
प्रतिष्ठित तिरंगा बर्फी से जुड़ा इतिहास
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के समृद्ध इतिहास से जुड़ी, तिरंगा बर्फी वाराणसी के निवासियों के दिलों में एक विशेष स्थान रखती है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, क्रांतिकारियों के बीच गुप्त बैठकों और सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा के लिए इस तिरंगे रंग की मिठाई को बहुत ही चतुराई से तैयार किया गया था. केसरिया रंग केसर से, हरा रंग पिस्ता से और सफेद रंग खोया और काजू से बनता है.
वाराणसी की ढलुआ मूर्ति धातु कास्टिंग शिल्प
वाराणसी के काशीपुरा इलाके से शुरू हुई धलुआ मूर्ति मेटल कास्टिंग क्राफ्ट ने अपनी जटिल और उत्तम धातु की मूर्तियों के लिए राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त की है. इस क्षेत्र के कारीगरों ने मां अन्नपूर्णा, लक्ष्मी-गणेश, दुर्गाजी और हनुमानजी जैसे देवताओं की मूर्तियों के साथ-साथ विभिन्न उपकरणों, घंटियों, सिंहासनों और सिक्कों की ढलाई के लिए मुहरें बनाने की कला में महारत हासिल की है.
वाराणसी की जीआई यात्रा
वाराणसी, जिसे अक्सर “सबसे विविध जीआई शहर” कहा जाता है, ने पिछले नौ वर्षों में जीआई-पंजीकृत उत्पादों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि देखी है। पहले, केवल बनारस ब्रोकेड और साड़ी और वाराणसी क्षेत्र के भदोही हस्तनिर्मित कालीन को जीआई टैग दिया गया था. हालांकि, यह संख्या अब बढ़कर प्रभावशाली 34 हो गई है, जो क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक शिल्प कौशल को दर्शाती है.
इन उत्पादों को मिल चुका है जीआई टैग
बनारसी साड़ी व ब्रोकेड, गुलाबी मीनाकारी, बनारसी जरदोजी, लकड़ी के खिलौने, ग्लास बीड्स, हैंड ब्लॉक प्रिंट, साॅफ्ट स्टोन जाली वर्क, वुड कार्विंग समेत मिर्जापुर के पीतल के बर्तन व हस्तनिर्मित दरी, भदोही की कालीन, गाजीपुर का वॉल हैंगिंग,निजामाबाद की ब्लैक पाॅटरी, चुनार का बलुआ पत्थर व ग्लेज पॉटरी, गोरखपुर का टेराकोटा क्राफ्ट.
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