Home डेयरी Dairy: दूध प्रोडक्शन बढ़ाने के साथ-साथ कृत्रिम गर्भाधान के क्या-क्या हैं फायदे, इन 8 प्वाइंट्स में पढ़ें
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Dairy: दूध प्रोडक्शन बढ़ाने के साथ-साथ कृत्रिम गर्भाधान के क्या-क्या हैं फायदे, इन 8 प्वाइंट्स में पढ़ें

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. डेयरी कारोबार से जुड़े हर पशुपालकों की यही कोशिश होती है कि किस तरह से दूध का प्रोडक्शन बढ़ाया जाए. कई बार अच्छी नस्ल का पशु होने के बावजूद बेहतर रिजल्ट नहीं आता है. इसकी वजह अलग-अलग हो सकती है. पशुपालक पशुओं को जरूरत के मुताबिक चारा ​भी खिलाते हैं लेकिन फिर भी दूध प्रोडक्शन नहीं बढ़ता है. पशु एवं मत्स्य संसाधन विकास गव्य विकास निदेशालय के मुताबिक दूध प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए सबसे बेहतर तरीका कृत्रिम गर्भाधान है. क्योंकि इसमें उन्नत नस्ल के सांडों का इस्तेमाल दुधारू पशुओं के दूध उत्पउदन को बढ़ाने के लिए किया जाता है.

एक्सपर्ट का कहना है कि कृत्रिम गर्भाधान के जरिए जहां दूध उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है तो वहीं इसके कई और फायदे भी हैं. जिस वजह से पशुपालकों को कृत्रिम गर्भाधान को अपनाने की सलाह दी जाती है. एक्सपर्ट का ये भी कहना है कि प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में कृत्रिम गर्भाधान से कई फायदे हैं. जिसके कारण भारत में कृत्रिम गर्भाधान को काफी महत्व दिया जा रहा है.

कृत्रिम गर्भाधान तकनीक के बारे में पढ़ें
कृत्रिम गर्भाधान तकनीक द्वारा उच्च कोटि के सांडों का बेहतरीन उपयोग होता है. इसके इस्तेमाल से दुधारू पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है. वहीं प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में एक सांड से बहुत अधिक बछड़े अथवा बछड़िया प्राप्त किये जा सकते हैं.

कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा बड़े पैमाने पर पशुओं में नस्ल सुधार किया जा सकता है.

पशुपालकों को सांड रखने एवं पालने की जरूरत नहीं रह जाती तथा सांडों के प्रबंधन में होने वाला खर्च बच जाता है.

पशुओं के कुछ ऐसे रोग है जो प्राकृतिक गर्भाधान से फैल सकते हैं. इन रोगो में ट्राइको मोनिएसिस, केम्पाइलोबैक्टेरियोसिस, लेप्टोस्पाइरोसिस प्रमुख हैं. कृत्रिम गर्भाधान विधि का प्रयोग करके इन रोगों की रोकथाम की जा सकती है.

हाई क्वालिटी के गुण वाले सांडों के फ्रोजेन स्पर्म को प्रोटेक्टेड करके काफी वर्षों तक रखा जा सकता है और सांड के मरने के बाद भी उसके प्रोटेक्टेड स्पर्म का कृत्रिम गर्भाधान में प्रयोग किया जा सकता है.

इस विधि में सांड का आकार और भार आड़े नहीं आता है इसीलिए छोटी, अपाहिज तथा डरपोक पशुओं को भी कृत्रिम गर्भाधान द्वारा गर्भित कराया जा सकता है.

सांड के मुकाबले उसके फ्रोजेन स्पर्म को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना आसान और कम खर्चीला होता है, इसके विपरीत सांड को एक स्थान से दूसरे स्थान भेजना बेहद मुश्किल, खर्चीला और खतरे से भरा काम है.

विदेशी सांडों के वीर्य का हमारे देश में संकर नस्ल पैदा करने के लिए उपयोग इसका एक अच्छा फायदा है.

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