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Glanders Disease: क्या है ग्लैंडर्स रोग के लक्षण और इसके बचाव, जानिए डिटेल

ग्लैंडर्स रोग के बारे में पता है कि यह एक संक्रामक रोग है.
प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. घोड़ा और खच्चर पालन लोगों को आर्थिक मदद देता है, लेकिन घोड़ा और खच्चरों में एक ऐसी बीमारी बहुत देखने में मिलती है जो बड़ा नुकसान पहुंचाती है. यह रोग है ग्लैंडर्स. आज हम बात कर रहे हैं इस बीमारी के बारे में. ग्लैंडर्स रोग का खतरा इंसानों में भी फैलने का बना रहता है. इस बीमारी के जो जीवाणु है वो पशुओं के शरीर में फैल जाते हैं, जिससे शरीर में गांठे पड़ जाती हैं और मुंह से ब्लड निकलने लगता है. घाेड़ों में इस बीमारी की पुष्टि होने पर इंफेक्शन वाले पशु को मार देना ही मात्र समाधान है. इंफेक्शन ना पहले आईये बात करते हैं ग्लैंडर्स रोग के बारे में. यह कैसे घोड़ा, गधों और खच्चरों को प्रभावित करता है. इस रोग के संक्रमण का क्या तरीका है और इसके लक्षण कौन-कौन से हैं. इसकी रोकथाम व उपचार की क्या-क्या तरीके हैं. पूरे आर्टिकल में हम आपको इसकी जानकारी दे रहे हैं.

जैसा कि ग्लैंडर्स रोग के बारे में पता है कि यह एक संक्रामक रोग है. यह एक ऐसा रोग है जो प्रमुख रूप से घोड़ा, गधाें और खच्चरों को प्रभावित करता है. यह बैक्टीरिया बर्क होल्डरिया मैलई के कारण होता है, अन्य जानवरों को भी प्रभावित कर सकता है. ग्लैंडर्स रोग के संक्रमण का क्या तरीका है इस के बारे में जानते हैं.

ये है ग्लैंडर्स रोग के लक्षणः ग्लैंडर्स रोग संक्रमित जानवरों की नाक से निकलने वाला स्राव, घावों से रिसने वाला द्रव, लार, मूत्र आदि के संपर्क में आने से हो सकता है. दूषित पानी चारा बर्तनों के कारण आदि के माध्यम से भी ये रोग फैलने की संभावना रहती है. जानवरों को प्रभावित कर देता है. इस रोग के जो लक्षण है उनके बारे में बात करते हैं. ग्लैंडर्स रोग तेजी से बुखार आता है, नाक से खून रिसता है. नाक के म्यूकोसा में सूजन आ जाती है, गांठें बन जाती हैं. स्वसन में अल्सर और घाव रहता है. सांस लेने में परेशानी होती है, खांसी होने लगती है. जानवर सुस्त रहता है और उसकी त्वचा घाव और गांठे बन जाती हैं. इसमें आंखों संबंधी विकार भी होते हैं.

लंगड़ा भी हो सकता है पशुः ग्लैंडर्स रोग को कैसे रोक सकते हैं और इसके उपचार क्या है आईए जानते हैं. ग्लैंडर्स को खत्म करने के लिए जानवर को ही खत्म करना पड़ता है, हालांकि रोकथाम के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं. यदि जानवर संक्रमित हो गया है तो उसे स्वस्थ पशुओं के साथ ना रखें और बिल्कुल अलग कर दें. अपने घोड़े की नियमित जांच करानी चाहिए. विशेष रूप से अन्य जानवरों के संपर्क में आने वाले पशुओं की जांच करना बहुत जरूरी है. इससे रोग का जल्दी पता लग सकता है. अपने अस्तबल में खाने के बर्तन उपकरण जो भी हैं वह साफ सफाई करें और स्वच्छता का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. चारा लाते समय यह देख लें कि वह कहीं से भी संक्रमित ना हो. पानी और जो चारे के देने के बर्तन हैं, वह भी साफ रहे. कुछ मामलों में जानवरों को एंटीबायोटिक दवा से इलाज दिया जा सकता है, लेकिन इस रोग का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है.

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