नई दिल्ली. पशुपालकों को आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन (एआई) की जगह लैप्रोस्को पिक एआई का फायदा मिलेगा. दरअसल, अभी तक पशुओं को एआई तकनीक की मदद से गाभिन किया जा रहा था, लेकिन अब लैप्रोस्कोपिक एआई से पशुओं को गाभिन किया जा सकेगा. इस तकनीक अन्य की तुलना में कई गुना फायदा भी है. जानकारी के लिए बता दें कि केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी) मथुरा ने इस टेक्निक का सफल परीक्षण कर लिया है. संस्थान का कहना है कि आने वाले समय में पशुओं को भी इस तकनीक से गाभिन किया जाएगा. अभी तक एआई तकनीक के चलते एक स्ट्रा वीर्य से सिर्फ एक बकरी को गाभिन किया जा सकता था लेकिन अब नई तकनीक की मदद से एक स्ट्रा में पांच बकरी गाभिन की जा सकेंगी.
बता दें कि सीआईआरजी ने देश में पहली बार लैप्रोस्कोपिक तकनीक का इस्तेमाल कर बकरी में आर्टिफिशल इंसेमीनेशन किया था. जिसके बाद 5 महीने के अंतराल पर नर मेमने ने जन्म लिया था. जो मेमना अब काफी बड़ा हो चुका है. मेमना और उसकी मां बुंदेलखंडी बकरी दोनों स्वस्थ्य हैं. संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक से कम सीमेन में ज्यादा से ज्यादा बकरियों को गाभिन कराया जा सकेगा. जिसका फायदा किसानों को ही मिलेगा. वहीं इस संबंध में सीआईआरजी के डायरेक्टर डॉ. मनीष कुमार चेटली कहते हैं कि इस नई तकनीक का ये फायदा है कि जितने सीमेन में अभी तक सिर्फ एक बकरी का एआई कराया जा रहा था अब उतने में ही पांच बकरियों का एआई कराकर पांच स्वस्थ मेमने हासिल किए जा सकेंगे. डॉ. चेटली ने नए जन्में मेमने का नाम अजायश रखने की बात बताई है. उनका कहना है कि संस्कृत में बकरी को अजा कहते हैं.
100 मिलियन सीमेन से 5 मेमने हासिल होंगे
लैप्रोस्कोपिक एआई तकनीक के इस्तेमाल के फायदे के बारे में गिनाते हुए वैज्ञानिक योगेश कुमार सोनी ने कहा कि अभी तक दूसरी तकनीक का इस्तेमाल करके किसी एक नर बकरे के 100 मिलियन सीमेन से सिर्फ एक ही मेमने का जन्म कराया जा सकता था. जबकि इस नई तकनीक की मदद से 100 मिलियन सीमेन में अब पांच मेमने जन्म कराया जा सकेगा. इस तकनीक से मेमने का जन्म कराने वाले वैज्ञानिक ने कहा कि इसका मतलब ये है कि एक बकरी के लिए सिर्फ 20 मिलियन सीमेन काफी होगा. इस तकनीक से हम अच्छी नस्ल के बकरों के सीमेन का बेहतर और ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर पाएंगे.
बहुत अच्छा रिजल्ट हासिल होगा
वहीं योगेश कुमार सोनी ने जानकारी देते हुए कहा कि भविष्य में हम इस तकनीक का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा और कई तरह की नस्ल की बकरियों में किया जाएगा. पुरानी तकनीक में ये दिक्कत थी कि अभी तक सिर्फ इससे 40 फीसद तक बकरी के गाभिन होने का रिजल्ट सामने आ पा रहा था. लेकिन नई तकनीक के रिजल्ट बहुत ही अच्छा आ रहा है. उन्होंने बताया कि नई तकनीक के चलते अब 60 से 70 फीसद गर्भधारण के केस सामने आने की पूरी संभावना है. ऐसा होने से कम सीमेन में हम ज्यादा से ज्यादा बच्चे हासिल कर सकेंगे.
विदेश में इस्तेमाल हो रही लैप्रोस्कोपिक एआई तकनीक
वहीं सीआईआरजी के डायरेक्टर डॉ. मनीष कुमार चेटली ने बताया कि हमारे संस्थान के लिए बड़ी कामयाबी ये है कि अभी तक विदेशों में इस तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ भेड़ों पर हो रहा था. जबकि हमारे देश में पहली बार इस तकनीक का इस्तेमाल बकरियों पर किया जा रहा है. अभी हमारे वैज्ञानिक इस पर और काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों की टीम डॉ. एसडी खर्चे, डॉ. एसपी सिंह, डॉ. रवि रंजन, डॉ. आर पुरूषोत्मन आदि अभी इसमे और संभावनाएं तलाश रहे हैं.
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