नई दिल्ली. मछलियों और सिंघाड़ा दोनों की ही बाजार में मांग है. इसलिए मांगुर मछली के साथ सिंघाड़ा उगाने से मौसमी जलभराव वाले क्षेत्रों के किसानों को अच्छी आमदनी हो सकती है. इसके अलावा, कटाई के बाद सिंघाड़े के फल से लेकर उसको सूखा के आटा बनाने के प्रोसेस के विकल्प संभावित रूप से अतिरिक्त फसल की बिक्री न होने पर भी आपको फायदा ही पहुंचाएगा. साथ ही इससे आप बेहतर बाजार मूल्य हासिल कर सकते हैं. मछली के साथ सिंघाड़ा का इंटरग्रेशन आय बढ़ाने के अलावा मछलियों के सतही कवर सुरक्षा भी प्रदान करता है. जिसके कारण मछली चोरी होने का डर कम हो जाता है.
फिश एक्सपर्ट विकास कुमार उज्जैनिया और राजलक्ष्मी आर्या का कहना है कि हवा में भी सांस लेने की क्षमता रखने वाली मछलियों के पालन के लिए जैविक और रासायनिक खाद की आवश्यकता नहीं होती है. हालांकि सिंघाड़ा के साथ कार्प मछली के पालन के लिए 40 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फेट एवं 60 किलो पोटाश का उपयोग प्रति हेक्टेयर जल क्षेत्र की दर से किया जा सकता है. खाद हमेशा दो किस्तों में दी जाती है. पहली किस्त पौधा रोपण के 20 दिन बाद देनी चाहिए और दूसरी किस्त पहली किस्त के 15 दिन बाद देनी चाहिए.
मछली के लिए फीड
मछली को पूरक आहार जैसे चावल की भूसी, सरसो की खली, सोयाबीन की खली, फिश मील और मिनरल मिक्सचर (40:40:15:4.7:0.3) के अनुपात में मिलाकर मछली को खिलाया जाता है. तालाब में ऐसी मछली की प्रजातियां रखनी चाहिए जो एक ही जलस्रोत में रहकर दूसरी प्रजाति को नुकसान न पहुंचाए. मत्स्य बीज का संचय मानसून (जुलाई अगस्त) माह में करना उचित रहता है. आमतौर पर कार्प मछली के साथ सिंघाड़ा पालन करते समय एक हेक्टर तालाब में 5 हजार आंगुलिकाओ का संचय करते हैं. उसी तरह हवा में सांस लेने की क्षमता रखने वाली मछलियों के साथ सिंघाड़ा पालन में 25 हजार मछलियां प्रति हेक्टर का संचय किया जाता है.
कितना होगा सिंघाड़े का उत्पादन
ऐसी मछलियों के संचय के समय ये खास ध्यान रखा जाता है कि सभी समान आकार की हों नहीं तो आहार के आभाव के कारण ये उनसे छोटी आकार की मछलियों को मार सकते हैं. वहीं दिसंबर जनवरी माह में सिंघाड़ा की फसल की निकासी कर लेनी चाहिए. उसके बाद ही मछली का निष्कासन करना चाहिए. मछली सह सिंघाड़ा पालन में प्रति वर्ष 1 हेक्टर तालाब से 1000-1200 किलो सिंघाड़ा उत्पादन किया जा सकता है.
मछली की निकालने के दौरान बरतें सावधानी
आमतौर पर मछली की निकासी मई जून माह में कर लेनी चाहिए. तब तक वह 8-10 महीने ( बाजार में बेचने योग्य) हो जाती हैं. कार्प मछली की निकासी आसान होती है लेकिन मांगुर जैसी मछलियों को निकालने के लिए तालाब को पूरी तरह सूखा दिया जाता है. क्योंकि ऐसा न करने पर हवा में भी सांस ले पाने की क्षमता वाली मछलियां तालाब में मौजूद कीचड़ में घुस जाती हैं. जिसके कारण उनको निकालने में बड़ी परेशानी हो सकती है.
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