नई दिल्ली. जब हरे चारे की कमी हो जाती है तो उस कमी को पूरा करने के लिए पशुओं को साइलेज खिलाया जाता है. इसलिए यहां पशुपालकों को ये जानना बेहद ही जरूरी कि किस तरह का साइलेज पशुओं को खिलाना चाहिए. वहीं इसको खिलाने का सही तरीका क्या है. IVRI
इज्जतनगर के एक्सपर्ट की मानें तो एक अच्छे साइलेज को पशु कुछ दिन के बाद बड़े चाव से खाने लग जाते हैं. हरे चारे में 5 प्रतिशत नमक मिला देने से साइलेज का स्वाद अधिक अच्छा हो जाता है. अच्छे प्रकार से बनायी गये साइलेज में हरे चारे का 80-85 प्रतिशत तक पोषकमान सुरक्षित रहता है. अच्छे साइलेज में गंध नहीं होती है. गंध युक्त साइलेज खराब माना जाता है.
अच्छे साइलेज का पीएच मान 4 से 4.2 तक बना रहता है. साइलों में लेक्टिक अम्ल बढ़ाने के लिए 3.5 किग्रा कार्बन बाई सल्फाईट प्रति 71 घनफुट की दर से चारे में मिलाया जाता है. साइलों की किण्वन (Fermentation) प्रोसेस और उसमें अवायवीय (Anaerobic) स्थिति पैदा करने के लिए क्रमशः सल्फर डाई आक्साइड 2-3 किग्रा प्रति टन चारा और 2 किग्रा सोडियम मैटाबाईसल्फाइट प्रति टन हरा चारा की दर से प्रयोग किया जाता है.
इस तरह खिलाएं पशुओं को साइलेज
अच्छी तरह से भरे हुए साइलों में साइलेज लगभग दो माह में, तीन महीने तक खिलाने के लिए तैयार हो जाता है. खिलाने के लिए साइलो का एक हिस्सा खोलते हैं और नीचे से ऊपर तक का पूरा टुकड़ा एक साथ निकालते हैं. राशन में 15 से 20 किग्रा. साइलेज प्रति पशु खिलाया जा सकता है. साइलेज के लिए अभ्यस्त होने में पशुओं को कुछ दिन लगते हैं, इसलिए शुरू में पशु एक दो दिन तक इसको न भी खाये तो निराश नहीं होना चाहिए. यदि साइलेज पशुओं के रहने वाले स्थान पर ही खिलाया जाता है तो इसे दोहन के बाद खिलाना चाहिए ताकि दूध में साइलेज की गन्ध न जा सके.
साइलेज बनाने में सावधानियां
साइलों को भरते समय कटे हुए चारे को पूरे क्षेत्रफल में पतली-पतली एक समान पर्तों में फैलाकर व दबा-दबा कर अच्छी तरह से भरना चाहिए ताकि हवा बाहर निकल जाये. साइलो को भरने में कम से कम समय लगाना चाहिए. साइलों का कम से कम 1/6 भाग प्रतिदिन भर जाना चाहिए, जिससे कि साइलों अधिक से अधिक 6 दिन में पूरा भर जाए. साइलों को काफी ऊंचाई तक भरना चाहिए जिससे कि बैठाव के बाद भी चारे का तल किनारे की दीवारों से काफी ऊंचा रहे. ऐसा करना इसलिए जरूरी होता है, क्योंकि किण्वन की क्रिया से चारे में अधिक सिकुड़न होती है. साइलों के अन्दर हवा व पानी बिल्कुल नहीं जाना चाहिए.
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