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Goat Farming: खिलाएं ये फूड जिससे तेजी से बढ़ेगा मेमना, बकरी पालकों को होगा मोटा मुनाफा

अच्छी बकरियों का वर्ष में दो बार व्याहना आदि से मां के दूध की उपलब्धता कम होती है. इसलिए बच्चों के लिये दूध के विकरूप की आवश्यकता होती है. इससे एक से अधिक संख्या में पैदा हुये बच्चों का जीवन सुरक्षित रहता है और वृद्धि दर नियमित रहती है.
प्रतीकात्मक तस्वीर।

नई दिल्ली। मेमने, दूधारू और गाभिन बकरियों गाभिन बकरियों को अलग-अलग तरह से चारा देना चाहिए. दुधारू बकरी को बरसीम और लूसर्न घास देने से ज्यादा पोषण मिलता है. सफल बकरीपालन के लिए नवजात शिशुओं के लिए तीन माह की आयु तक मां का दूध आदर्श आहार है, जिससे उनकी पोषण आवश्यकताओं की पूर्ति होती है. वृद्धि की अवस्था में पोषण शिशुओं की वृद्धि के लिए बेहद जरूरी है, इससे रोग व मृत्यु दर में कमी होती है. बकरी पालकों को वृद्धि की इस अवस्था में शिशुओं का सम्पूर्ण प्रबन्ध के लिए जागरूक रहना चाहिए.

बकरी के बढ़ते मेमनों की उचित वृद्धि और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए उनका उचित पोषण अति आवश्यक है. जन्म के तुरन्त बाद जीस पिलाना उनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है. जन्म के बाद मेमनों को खीस पिलाना अत्यन्त आवश्यक है. खीस में प्रोटीन की मात्रा साधारण दूध में पाई जाने वाली प्रोटीन की मात्रा की 4 गुना होती है जो ऊर्जा का प्रमुख स्रोत है. यही नहीं, खीस में पाई जाने वाली प्रोटीन में उपस्थित इन्यूनोग्लोब्यूलिन बच्चे के रक्त में समायोजन की दर धीरे-धीरे कम होती जाती है जो 24 घंटे बाद शून्य हो जाती है। इसलिए जन्म के समय बच्च्चों की अपेक्षाकृत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता को पूरा करने तथा उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता के विकास के लिए खीस पिलाना आवश्यक है।

खीस की मात्रा खीस की मात्रा बच्चों के शरीर भार के अनुसार पिलानी चाहिए. यह मात्रा शरीर भार के 1/10 भाग के बराबर होनी चाहिए जिसे 24 घंटे में 2 या 3 बार में देते हैं. पहली बार खीस बच्चे के जन्म के बाद उसके शरीर को पोंछ कर साफ करने के बाद जितना जल्दी संभव हो पिलाना चाहिए. कोशिश यह होनी चाहिए कि पहली बार खीस जन्म के 1/2 घंटा तक के समय में पिला दें। जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, खीस का महत्य कम होता जाएगा.

दूध का विकल्प कुछ कारणों, जैसे एक से अधिक बच्चों का जन्म, मां के दूध की कमी, व्यवसायिक शिशु पालन, शिशु को मां से जल्दी अलग करना, अच्छी बकरियों का वर्ष में दो बार व्याहना आदि से मां के दूध की उपलब्धता कम होती है. इसलिए बच्चों के लिये दूध के विकरूप की आवश्यकता होती है. इससे एक से अधिक संख्या में पैदा हुये बच्चों का जीवन सुरक्षित रहता है और वृद्धि दर नियमित रहती है. न्यूनतम दुग्ध उत्पादन और अधिक शिशु जन्म दर की अवस्था में शिशु की मत्यु दर दूध की कमी के कारण काफी बढ़ जाती है. इस अवस्था में दुग्ध विकल्प का उपयोग करके शिशुओं की जीवन रक्षा की जा सकती है. मध्यम और अधिक दुग्ध उत्पादन करने वाली मादाओं के लिए मां के दूध के स्थान पर दुग्ध विकल्प प्रयोग किया जा सकता है. इसलिए बाकी दूध मनुष्यों के प्रयोग में लिया जा सकता है.

केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान द्वारा मां से अलग होने से पहले की अवस्था में बकरी के बच्चों के लिए दुग्ध विकल्प विकसित कर उसका परीक्षण किया गया है. दुग्ध विकल्प में वसा रहित दुग्ध चूर्ण 47 प्रतिशत, सोयाबीन आटा 9 प्रतिशत, गेहूं का आटा 35 प्रतिशत नारियल का तेल 7 प्रतिशत, खनिज मिश्रण 2 प्रतिशत और 0.2 मि.ली. व्युटाइरिक अम्ल, 2 ग्राम साइट्रिक अम्ल और एक पैक लैक्टो बैसिलाई चूर्ण होता है. इस दुग्ध विकरूप में 24 प्रतिशत सी.पी. (कड प्रोटीन) मां के दूध के समान होती है। इसलिए बकरी पालकों को बकरी के बच्चों को मां के दूध के स्थान पर धीरे धीरे दुग्ध विकल्प देना चाहिए. फिर से दुग्ध विकल्प बनाने के लिये 135 ग्राम दुग्ध विकल्प चूर्ण को एक लीटर स्वच्छ और हल्के गर्म पानी में घोलकर तैयार करके मेमनों की आवश्यकतानुसार (प्रायः 250-400 मि.ली./दिन/शिशु) बच्चों के शरीर भार के अनुसार एक साफ दूध की बोतल द्वारा बच्चों को पिलाना चाहिए।

जन्म से तीन महीने तक मेमनों के आहार इस उम्र में बकरी के बच्चे नस्ल आधार पर 1 किलो 600 ग्राम से 7 किलोग्राम तक के होते हैं. ये प्रायः अपनी मां का दूध पीते हैं. पहले से चौथे या सातवें दिन तक बच्चे को फेनुस या खीस की भरपूर मात्रा पिलाएं. इससे दो फायदे हैं. पहला तो यह कि बच्चों को घूमने-फिरने और अन्य क्रियाओं के लिए आवश्यक ऊर्जा की पूर्ति होती है. दूसरा यह कि यह बच्च्चों को जानलेवा बीमारियों से रक्षा करता है. अगर बच्चों की खीस न पिलाया जाए तो उनकी शरीर में बीमारी के कीटाणुओं के खिलाफ लड़ने की क्षमता कम हो जाती है. इसके बाद उन्हें मां से अलग कर दें दिन में केवल 2-3 बार ही दूध पीने दें. इसके अलावा इस उम्र में उनको शुरूआती दाना खिलाना शुरू कर दें. इसे अंग्रेजी में क्रीप या स्टार्टर कहते हैं.

4 से 6 महीने तक के मेमनों के आहार इस उम्र में बकरी के वजन में अधिक वृद्धि होती है. अच्छे किस्म का हरा चारा यानी रिजका, बरसीम, खूसर्न, जिसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक हो, इसकी वृद्धि में बहुत सहायता करता है. अगर दलहन जातीय चारा यानी मसूर, मूंग, अरहर आदि की पत्तियां उपलब्ध न हो सके, तो दाना देकर इसकी पूर्ति करनी चाहिए.

7 से 10 महीने तक मेमनों के आहार इस आयु का बच्चा मांस के लिए बेचने लायक हो जाता है. इसलिए इस समय का आहार ऐसा होना चाहिए जिससे बकरी के वजन में ज्यादा वृद्धि हो. इससे बाजार में अच्छी कीमत मिलती है. इस उम्र में जो दाना खिलाया जाता है. उसे फिनिशर दाना कहते हैं. खिलाने से वजन में एक तिहाई वृद्धि हो सकती है. इस समय प्रति बकरी 1.5 से 3.0 किलो दाना प्रतिमाह आवश्यक होती है. ज्यादा खिलाने से पेट खराब होने के भी संभावना रहती है.

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