नई दिल्ली. पशुपालन में बछड़ों और बछियों के सींग को हटाने का भी अपना महत्व है. एनिमल एक्सपर्ट के मुताबिक पशुओं में सींग अपनी रक्षा तथा बचाव के लिए होते हैं. जिससे वे दूसरे पशुओं पर हमला करते हैं. वहहीं सींगों की वजह से पशुओं के नस्ल की पहचान भी होती है, लेकिन सींगों वाले पशुओं को नियंत्रित करना तथा उनके साथ काम करना मुश्किल होता है. क्योंकि इनसे अन्य पशुओं तथा उनके साथ काम करने वाले इंसानों को चोट लगने का भी खतरा रहता है. कई बार देखा गया है कि पशु इंसानों पर हमला कर देते हैं.
वहीं सींग टूट जाने पर पशु को बहुत तकलीफ होती है. सींग वाले पशुओं को होर्न कैंसर होने का भी खतरा रहता है. इसलिए आधुनिक व वैज्ञानिक तरीके से डेयरी फार्मिंग करने के लिये पशुओं को बचपन से ही सींग रहित कर दिया जाता है. एक्सपर्ट के मुताबिक ये बहुत ही जरूरी काम है. सींग रहित पशुओं के साथ गौशाला में काम करना आसान होता है तथा ऐसे पशु गौशाला में कम स्थान घेरते हैं. सींग रहित पशु देखने में भी सुन्दर लगते हैं तथा उनकी बाजार में कीमत भी सींग वाले पशुओं के मुकाबले ज्यादा मिलती है.
10-15 दिन की उम्र में हटाना चाहिए सींग
बछड़ों/बच्छियों को सींग रहित करने के लिए जन्म के कुछ दिन बाद उनके सींगों की जड़ को दवा अथवा आपरेशन के जरिए हटा दिया जाता है. यह कार्य गाय के बच्चे की 10-15 दिन की उम्र तथा भैंस के बच्चे की 7-10 दिन की उम्र में जरूर से कर लेना चाहिए. क्योंकि तब तक सींग की जड़ कपाल की हड्डी (स्कल) से अलग होती है जिसे आसानी से निकाला जा सकता है. इससे अधिक उम्र के बच्चे को सींग रहित करने से उसे लकलीफ होती है.
इस तरह हटाते हैं सींग
पहले बछड़े और बच्छियों को सींग रहित करने के लिए उनके सींग के निकलने के स्थान पर कास्टिक पोटाश का इस्तेमाल किया जाता था जिससे सींग की जड़ नष्ट हो जाती थी, लेकिन अब यह कार्य एक विशेष बिजली की मशीन यंत्र जिसे इलेक्टिक डिहोर्नर कहते हैं के साथ एक छोटी सी शल्य क्रिया द्वारा किया जाता है. आपरेशन से पहले सींगों की जड़ों वाले स्थान को इन्जेकशन देकर सुन्न कर लिया जाता है. जिससे शल्य क्रिया के दौरान पशु को तकलीफ महसूस नहीं होती.
बड़े पशुओं के सींग हटाने में होती है दिक्कत
सींग रहित करने के स्थान पर चमड़ी में थाड़े से घाव हो जाते हैं जिन पर एन्टीसेप्टिक क्रीम लगाने से वे कुछ दिनों में ठीक हो जाते हैं. बड़े पशुओं को सींग रहित करना कुछ मुश्किल होता है क्योंकि इसमें बडे आपरेशन की जरूरत पड़ती है. वहीं जख्म भी बड़ा होता है जिसके ठीक होने में कुछ अधिक समय लगता है.
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