नई दिल्ली. पशुओं में कई खतरनाक बीमारियों की वजह से प्रोडक्शन पर असर पड़ता है साथ ही उनकी मौत भी होती है. इन्हीं बीमारियों से ट्रिपेनोसोमियोसिस (सर्रा) बीमारी है जो पालतू एवं जंगली पशुओं को प्रभावित करने वाले प्रमुख रोगों में से एक है. एक्सपर्ट कहते हैं कि इस रोग के कारण पशुओं की उत्पादक क्षमता में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से अत्याधिक कमी हो जाती है. ज्यादा आर्थिक नुकसान को देखते हुए पशुपालकों को इस रोग के रोकथाम के बारे में समुचित जानकारी रखना महत्वपूर्ण हो जाता है.
यह बीमारी रक्त परजीवी जनित रोग, ट्रिपेनोसोमाइवेन्साई नाम के प्रोटोजोआ के पशु के रक्त-प्लाज्मा में मौजूद के कारण होता है. इसे ‘सर्रा’ रोग के नाम से भी जाना जाता है. यह परजीवी बहुत सारे पशुओं जैसे-घोडा, कुत्ता, ऊँट, भैंस, गाय, हाथी, सुअर, बिल्ली चूहा, खरगोश, बाघ, हाथी, हिरन, सियार, चितल, लोमड़ी आदि को प्रभावित करता है। लेकिन ऊँट, घोड़ा एवं कुत्ता में सर्रा बहुत गंभीर रोग के रूप में प्रकट होता है. भैंस में इस रोग का प्रकोप गाय की अपेक्षा अधिक होता हैं.
कैसे होता है रोग का प्रसार
यह रोग बरसात के समय तथा बरसात के 2-3 महीनों में अधिक देखने को मिलता है क्योंकि इस मौसम में रोग फैलाने वाले उत्तरदायी मक्खियो जैसे-टेबेनस (मुख्य रूप से) आदि की संख्या अत्याधिक बढ़ जाती है. इस रोग का फैलाव रोग ग्रस्त पशु से स्वस्थ पशुमें खून चूसने या काटने वाले मक्खी जैसे टेबेनस (मुख्यतः), स्टोनोक्सिस, लाइपरोसिया आदि द्वारा यांत्रिक रूप से संचरण होता है. बिहार में टेबेनस मक्खी को पशुपालक ‘डांस’ मक्खी के नाम से ज्यादा जानते है.
बीमारी का क्या है लक्षण
इस रोग का गाय-भैंस में ये कुछ मुख्य लक्षण दिखाई पड़ते हैं. प्रभावित पशु में रूक-रूक कर बुखार आना, बार-बार पेशाब करना, खून की कमी, पशु द्वारा गोल चक्कर लगाना, सिर को दीवार या किसी कडी वस्तु में टकराना. खाना-पीना कम कर देना, आँख एवं नाक से पानी चलने लगना, मुँह से भी लार गिरने * प्रभावित पशुका धीरे-धीरे अत्याधिक दुर्बल एवं कमजोर होते चला जाना. सकमित दुधारू पशु का दुध उत्पादन बहुत ज्यादा कम हो जाना. प्रभावित पशु का प्रजनन क्षमता में कमी एवं गनित पशुओं में गर्भपात होने की पूरी संभावना होती है. घोड़ों में रूक-रूक कर बुखार आना, दुर्बलता, पैर एवं शरीर के निवले हिस्सों में जलीय त्वचा शोथ (इडीमा), पित्ती के जैसा फलक (अर्टिलेरियल प्लैक) गर्दन एवं शरीर के पार्श्व क्षेत्रों आदि लक्षण प्रकट होता है. कुत्ता में सर्रा रोग से संकनित कुत्ता के कंठनली में जलीय त्वचा शोथ (इडीमा) हो जाता है जिसके कारण संक्रमित कुत्ता का आवाज रैबीज रोग के त्तमान हो जाता है। इसके अलावे कॉर्नियल ओपेसिटी भी होता है जिसमें ऑख ब्लू रंग का हो जाता है.
रोग की रोकथाम कैसे करें
सर्रा रोग से बचाव के लिए कोई टीका अभी उपलब्ध नही है. इसलिए इस रोग से बचाव के लिए क्वानापाइरामीनक्लोराइड औषधि या आइसोमेटामिडियमक्लोराइड का इस्तेमाल कर किया जा सकता है. जिसके प्रयोग से पशु को 4 महीनो तक सर्रा रोग नहीं हो पाता है. सर्रा रोग फेलाने वाले मक्खियों जैसे-टेबेनस आदि की संख्या को नियंन्नण करके भी इस रोग के संकमण को कम किया जा सकता है. मक्खियों की संख्या को नियंन्नण कीटनाशक का छिड़काव समयानुसार पशु आवास के अन्दर एवं आस-पास करके रहना चाहिए. ट्रिपेनोसोमियोसिस (सरी) रोग के उपचार हेतु क्वानापाइरामीनसल्फेट तथा क्वानापाइरामीनक्लोराइड औषधि पशु चिकित्सक की देख-रेख में देना चाहिए. इस बीमारी के प्रभावित पशु के शरीर में अत्याधिक मात्रा में ग्लुकोज की कमी हो जाती है जिसकी पूर्ति हेतु डेक्सट्रोज सैलाइन का प्रयोग पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार करना फायदेमंद होता है.
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