नई दिल्ली. ठंड के मौसम में सिर्फ इंसानों को ही नहीं बल्कि जानवरों को भी खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. इतना ही नहीं फसलों के लिए भी यह मौसम खतरनाक होता है. ठंड में फसले जहां खराब हो जाती हैं तो वहीं ठंड की वजह से पशुओं के स्वास्थ्य पर भी असर देखने को मिलता है. पशुओं को कई तरह की बीमारियों से जूझना होता है. इस मौसम में खासतौर से पशु निमोनिया का शिकार हो जाते हैं. ऐसे में निमोनिया से कैसे उनका बचाव किया जाए यह जानना पशु पालकों लिए बहुत जरूरी है. निमोनिया आमतौर पर फेफड़ों के संक्रमण के कारण ही होता है, जो किसी भी जानवर में होना आम बात है.
गंभीर निमोनिया क्या है
निमोनिया आमतौर पर फेफड़ों के संक्रमण के कारण होता है. किसी भी जानवर में यह हो सकता है. हवा मौजूद बैक्टीरिया और वायरस सांस के जरिए फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं. कई बार फंगस के कारण भी फेफड़े संक्रमित हो जाते हैं. यदि कोई जानवर पहले से ही फेफड़ों की बीमारी से जूझ रहा है तो हृदय रोग जैसी किसी भी बड़ी बीमारी से पीड़ित है तो उन्हें गंभीर संक्रमण यानी गंभीर निमोनिया भी हो सकता है. ऐसे में निमोनिया होने पर एक या दो फेफड़े कफ से भर जाते हैं. जिस वजह से फेफड़ों की ऑक्सीजन लेने में दिक्कतें आती हैं. बैक्टीरिया से होने वाले निमोनिया को दो से चार सप्ताह में ठीक किया जा सकता है.
ऐसा किया जा सकता है इलाज
जबकि वायरस से होने वाले निमोनिया को ठीक होने में ज्यादा वक्त लगता है. जानवरों को साफ कमरे में रखना चाहिए. ध्यान रखें कि जानवरों के कमरे में सूरज की रोशनी जरूर आनी चाहिए. कमरा हवादार भी होना चाहिए. कमरे को गर्म रखें और जानवरों के शरीर खासतौर पर छाती और पैरों को गर्म रखने के लिए उन्हें अच्छी तरह से रखना चाहिए. अधिकांश निमोनिया इलाज अस्पताल में भर्ती किए बिना डॉक्टर की देखरेख में किया जा सकता है. आमतौर पर मौखिक एंटीबायोटिक आराम तरल पदार्थ और घरेलू देखभाल से भी यह बीमारी ठीक हो जाती है.
ये दवाएं दी जा सकती हैं
एक्सपर्ट कहते हैं कि टेट्रासाइक्लिन जैसी एंटीबायोटिक्स 15-20 मिलीग्राम/किग्रा वजन पर दी जाए. पशुओं को वजन के आधार पर स्ट्रोटोपेनिसिलिन 25 मिग्रा/किग्रा तथा एम्पीसिलीन एवं क्लोक्सासिलिन 7-10 मिग्रा युक्त दवा देनी चाहिए. वहीं डेक्सामेथासिन जैसे स्टेरॉयड बड़े जानवरों के लिए 5 मिलीलीटर और छोटे जानवरों के लिए 2-3 मिलीलीटर की मात्रा में दिए जाने चाहिए. एंटीहिस्टामाइन और एनाल्जेसिक आवश्यकतानुसार और डॉक्टर की सलाह पर दी जानी चाहिए. ब्रोन्कोडिलेटर और कफ निस्सारक आयुर्वेदिक औषधियां इसी प्रकार देनी की सलाह दी जाती है. ब्रुकोप्राइटिर- 30-40 ग्राम दो बार, कैसलोन- 50-60 ग्राम दो बार और कोफलेक्स- 40-50 ग्राम दो बार देना चाहिए.
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