नई दिल्ली. एक होता है प्राकृतिक गर्भाधान और दूसरा कृत्रिम गर्भाधान जिसे एआई भी कहा जाता है. प्राकृतिक गर्भाधान सांड/भैंसा अपने स्पर्म सीधे मादा की योनि में डालते हैं. जबकि कृत्रिम गर्भाधान में नर पशु से हासिल किए गए स्पर्म को मादा पशु के जेनेटिल ट्रैट में उपकरणों द्वारा डाला जाता है. एक्सपर्ट कई फायदे भी बाते हैं. जिसमें बीमारियों से बचाव, नस्ल सुधार और दूध उत्पादन बहद ही अहम है. इन सब में सुधार की वजह से पशुपालकों को सीधे तौर पर फायदा होता है.
पशुपालन में सबसे ज्यादा नुकसान बीमारी और उत्पादन कम होने की वजह से ही होता है. अगर पशुओं को बीमारी लग जाए तो फिर दूध उत्पादन तो घटता ही है साथ में पशु कमजोर हो जाते हैं और उनकी अतिरिक्त देखभाल करने की जरूरत पड़ती है. इन सबके चलते पशुपालक पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता है. एआई के जरिए बीमारी लगने का खतरा भी कम रहा है और अच्छे नस्ल के सांड के स्पर्म से पैदा होने वाली बछिया से ज्यादा दूध भी हासिल किया जा सकता है. आइए कृत्रिम गर्भाधान के फायदों और सुझाव के बारे में जानते हैं.
कृत्रिम गर्भाधान के फायदे क्या हैं
कृत्रिम गर्भाधान द्वारा उच्च कोटि के सांडों का अधिकतम उपयोग करके दुधारू पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता को बढ़ाया जा सकता है.
कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा बड़े पैमाने पर नस्ल सुधार किया जा सकता है. इससे पशुओं में गर्भाधान की ज्यादा संभावना रहती है.
कृत्रिम गर्भाधान से प्रजनन संबंधी बीमारियों की जानकारी मिल जाती है जिससे उनकी रोकथाम की जा सकती है.
पशुओं के कुछ ऐसे रोग हैं जो नर पशु के पेनिस द्वारा प्राकृतिक गर्माधान से फैलते है. जेनिटल्स के इन रोगों की रोकथाम में कृत्रिम गर्भाधान की विशेष भूमिका है.
उच्च आनुवंशिक गुणों वाले सांड के हिमीकृत वीर्य को संरक्षित करके रखा जा सकता है तथा सौड़ के मरने के बाद भी कृत्रिम गर्भाधान के द्वारा प्रयोग किया जा सकता है.
कृत्रिम गर्भाधान में सांड का आकार एवं भार आड़े नहीं आता है. इसीलिए छोटी, अपाहिज तथा डरपोक गायों को भी कृत्रिम गर्भाधान द्वारा गर्भित कराया जा सकता है.
उत्तम नस्ल के सीड़ के हिमीकृत वीर्य को वायु मार्ग या अन्य साधनों से दूरदराज से लाया व भेजा जा सकता है, इसके विपरीत सौड़ को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना अत्यंत कठिन, खर्चीला एवं जोखिम भरा कार्य है.
सफलता के लिए पशुपालकों को सुझाव
पशुपालकों को अधिक से अधिक कृत्रिम गर्भाधान विधि को अपनाना चाहिए. क्योंकि अक्सर गांव में जो प्रजनक सांड होता है वो कई गायों से मैथुन करता है और मैथुन सम्बन्धी रोगों को फैलाता है. इनसे बचने के लिए तथा नस्ल सुधार के लिए कृत्रिम गर्भाधान का प्रयोग करना चाहिए क्योंकि इस तकनीक में उन्नत नस्ल के स्वस्थ प्ररीक्षित सांडो का स्पर्म उपयोग में लाया जाता है. पशुपालक को अपने पशु के गर्मी में होने के स्पष्ट लक्षणों की पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि वो सही समय पर पशु का गर्भाधान करा सके. मादा पशु के गर्मी के स्पष्ट लक्षण है बार बार रम्भाना, दूसरे पशुओ पर चढ़ना तथा दूसरे पशुओं को विशेषकर साँड को अपने ऊपर चढ़ने देना, योनि मार्ग से पारदर्शी चिपचिपा स्राव, चारा कम खाना, बाई बाई, पेशाब करना, दूध कम हो जाना और भगनासा का गुलाबी हो जाना आदि.
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