नई दिल्ली. जब केन्द्र सरकार ने मछली पालन के लिए 20 हजार करोड़ रुपये की पीएम मत्स्य संपदा योजना लागू की तो कोई भी नहीं समझ पाया कि सी फूड पर सरकार इतनी मेरबानी क्यों दिखा रही है. हालांकि जब डाटा देखा गया तो पता चला कि डाटा मछली से नहीं झींगा से जुड़ा था. जहां एक ओर झींगा को लेकर लेकर देश के घरेलू बाजार में तमाम तरह की अफवाहें हैं तो वहीं दूसरी ओर अमेरिका और चीन जैसे बड़े देश भारतीय झींगा खरीदने के लिए बिल्कुल तैयार रहते हैं. इस बात की गवाही खुद सरकारी आंकड़े देते हैं. गौरतलब है कि साल 2021-22 तक यानि 10 साल में झींगा का एक्सपोर्ट करीब पांच लाख टन से ज्यादा के पार चला गया है. देश से झींगा का उत्पादन एक लाख टन से शुरू हुआ था लेकिन मांग बढ़ने के बाद इसका 9 से 10 लाख टन तक प्रोडक्शन हो रहा है.
दूसरी ओर फ्रोजन फिश का एक्सपोर्ट घटा है. ये 10 साल में साढ़े तीन लाख टन से सवा दो लाख टन पर लुढ़क गया है. वहीं फ्राइड फिश का एक्सपोर्ट भी कम हुआ है लेकिन ड्राई फिश के एक्सपोर्ट ने राहत देने वाला काम किया है. हालांकि झींगा के आंकड़े के आसपास भी कोई पहुंच नहीं सका. एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022-23 में कुल 64 हजार करोड़ रुपये का सी फूड एक्सपोर्ट किया गया था. इस आंकड़े पर गौर करें तो सिर्फ झींगा से 40 से 42 हजार करोड़ रुपये की इनकम की गई थी. जब अब हालत ये है कि 1.7 मिलियन टन सी फूड एक्सपोर्ट किया गया था लेकिन उसमें झींगा एक्सपोर्ट बहुत कम हुआ है. गत तीन साल में झींगा के रेट 20 से 25 फीसद तक नीचे चला गया है. घरेलू और इंटरनेशनल दोनों ही मार्केट में झींगा कई स्तर पर लड़ाई लड़ रहा है. इससे झींगा किसानों को करीब 10 हजार करोड़ रुपये का भारी भरकम नुकसान हुआ है.
एक्सपर्ट का कहना है कि यदि सी फूड में से झींगा को हटा दें तो एक्सपोर्ट में माल बहुत कम रह जाएगा. दूसरी ओर झींगा ने सी फूड एक्सपोर्ट को छलांग लगाने में मदद की थी. जब वर्ष 2010 में भारत एक लाख टन झींगा का प्रोडक्शन हो रहा था तो उस वक्त विश्वभर के अलग—अलग देशों में में 15 लाख टन झींगा उत्पादन हो रहा था. लेकिन आज चौतरफा मार के चलते झींगा फार्मर अपना उत्पादन घटाने को मजबूर हैं. अब कुछ आंकड़ों को देखा जाए तो मत्स्य और पशुपालन मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 2003-04 से लेकर 2013-14 तक फ्रोजन झींगा का एक्सपोर्ट 72 हजार करोड़ रुपये का हुआ था. वहीं साल 2014-15 से लेकर 2021-22 तक फ्रोजन झींगा का 2.39 लाख करोड़ रुपये एक्सपोर्ट हुआ. गौरतलब है कि पीएम नरेद्र मोदी भी अक्सर अपने भाषणों में सीफूड एक्सपोर्ट को आगे ले जाने और हर तरह की मदद की बात कहते हैं.
किन—किन वजह से से घटा एक्सपोर्ट
झींगा हैचरी एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि येलांका ने का कहना है कि कोरोना के बाद से इंटरनेशनल मार्केट में वित्तीय संकट था. जबकि उससे संभलने के बाद रूस-यूक्रेन की लड़ाई का भी असर इस व्यापार पर पड़ा. इसके अलावा इक्वाडोर झींगा का भारत से ज्यादा उत्पादन कर रहा है. हम नौ लाख टन कर रहे हैं तो वो 12 लाख टन के आसपास कर रहा है. बाजार में माल ज्यादा आने की वजह से भी रेट गिरा है. जबकि घरेलू स्तर पर झींगा फार्मर को अलग से दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यहां बिजली के रेट पर कोई राहत नहीं है. जबकि झींगा का फीड भी महंगा है. वहीं क्लाइमेंट चेंज के चलते बेवक्त झींगा में बीमारियों और दवाओं पर खर्च भी बहुत होता है. जिससे इंटरनेशनल मार्केट में मुकाबला करना आसान नहीं है. इन वजहों से यहां का झींगा का दाम घट रहा है.
झींगा को प्रचार की जरूरत है
झींगा एक्सपर्ट और झींगालाला फूड चैन के संचालक डॉ. मनोज शर्मा कहते हैं कि देश में झींगा उत्पादन नौ से 10 लाख टन के आसपास होता है. जबकि वहीं पंजाब-हरियाणा और इसके अलावा राजस्थान के चुरू तक में झींगा उत्पादन किया जा रहा है. सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि झींगा की घरेलू बाजार में कद्र नहीं की जाती है. जबकि दूसरी ओर देश में करीब 160 लाख टन मछली खाई जाती है. जबकि बहुत ही मछलियों की कीमत दो हजार रुपये किलों तक है. वहीं झींगा तो सिर्फ 350 रुपये किलो में बिकता है. दो सौ से ढाई सौ रुपये किलो तक लोग रेड मीट खाते हैं. जिसमें करीब 15 फीसद प्रोटीन है, जबकि झींगा में 24 फीसद प्रोटीन होता है. उन्होंने कहा कि यदि देश में तीन से चार लाख टन झींगा की भी खपत हो जाए तो भारत झींगा के मामले में विश्व में नंबर वन बन सकता है. इसके लिए देश के दिल्ली, मुम्बई, चैन्नई, चंडीगढ़, बेग्लोर आदि शहरों में भी झींगा का प्रचार करने की जरूरत है.
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